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________________ नेतिक निर्णय का स्वरूप एवं विषय परिणाम की निष्पत्ति देखी जाती है। यद्यपि ग्रीन प्रभृति कुछ पाश्चात्य विचारक यह मानते हैं कि शुभ हेतु से किया गया कार्य सर्वदा शुभ परिणाम देनेवाला होता है, लेकिन अनुभव यह है कि कभी-कभी कर्ता द्वारा अनपेक्षित कर्म-परिणाम भी प्राप्त हो जाते हैं। डाक्टर रोगी को स्वस्थ करने के लिए शल्य-क्रिया करता है, लेकिन रोगी की मृत्यु हो जाती है। अनपेक्षित कर्म-परिणाम को परिणाम मानने पर ग्रीन की कर्म के उद्देश्य और फल में एकरूपता की मान्यता टिक नहीं पाती। यदि कार्य के उद्देश्य और कार्य के वास्तविक परिणाम में एकरूपता नहीं हो तो प्रश्न उत्पन्न होता है कि इनमें से किसे नैतिक निर्णय का विषय बनाया जाये ? पाश्चात्य नैतिक चिन्तन में इस समस्या को लेकर स्पष्टतया दो प्रमुख मतवादों का निर्माण हुआ है जो फलवाद और हेतुवाद नाम से अभिहित किये जा सकते हैं । फलवादी धारणा का प्रतिनिधित्व बेन्थम और मिल करते हैं। बेन्थम की मान्यता में हेतुओं का अच्छा या बुरा होना उनके परिणाम पर निर्भर है। मिल की दृष्टि में 'हेतु' के सम्बन्ध में विचार करना नैतिकता का क्षेत्र ही नहीं है। उनका कथन है कि हेतु को कार्य की नैतिकता से कुछ भी करना नहीं होता। दूसरी ओर, हेतुवादी परम्परा का प्रतिनिधित्व कांट, बटलर आदि विचारक करते हैं। मिल के ठीक विपरीत कांट का कहना है कि हमारी क्रियाओं के परिणाम उनको नैतिक मूल्य नहीं दे सकते । बटलर कहते हैं कि किसी कार्य की अच्छाई या बुराई बहुत कुछ उस हेतु पर निर्भर है, जिससे वह किया जाता है । फलवाद की दृष्टि से परिणाम ही नैतिक मूल्य रखते हैं। फलवाद सारा बल कार्य के उस वस्तुनिष्ठ तत्व पर देता है जो वास्तव में किया गया है । उसके अनुसार, नैतिकता का अर्थ ऐसे परिणामों को उत्पन्न करना है जिनसे जनसाधारण के कल्याण में अभिवृद्धि हो। फिर भी यहाँ ज्ञातव्य है कि पाश्चात्य फलवाद की दृष्टि में नैतिक मूल्यांकन के लिए परिणाम को भौतिक परिनिष्पत्ति उतनी महत्त्वपूर्ण नहीं है जितनी कि परिणाम की वांछितता अथवा परिणाम का अग्रावलोकन । बेन्थम या मिल यह नहीं कहते कि यदि किसी डाक्टर के द्वारा की गयी चीरफाड़ से रोगी की मृत्यु हो जाये तो उसका कार्य निन्दनीय है -यदि सर्जन का वांछित परिणाम या अग्रावलोकित परिणाम चीर-फाड़ द्वारा रोगी के जीवन की रक्षा करना था तो वह कार्य नैतिक दृष्टि से उचित ही था, चाहे वह उसमें सफल न हुआ हो। मिल एवं बेन्थम के अनुसार, इस बात से कर्ता की नैतिकता में कोई अन्तर नहीं पड़ता कि उसने वह कार्य धनार्जन के लिए किया अथवा अपनी प्रतिष्ठा के लिए किया अथवा दया से प्रेरित होकर किया। फलवाद के अनुसार प्रेरक (धन, यश और दया) नैतिक मूल्यांकन की दृष्टि से कोई अर्थ नहीं रखते। इस धारणा के विपरीत हेतुवाद में संकल्प अथवा प्रेरक ही नैतिक मूल्य रखते हैं। हेतुवाद के अनुसार, यदि प्रेरक अशुभ था तो कार्य भी अशुभ ही माना जायेगा । यदि कोई डाक्टर किसी सुन्दर स्त्री के जीवन की रक्षा इस भाव से प्रेरित होकर करता है १. यूटिलिटेरियनिज्म, पृ० २७; उद्धृत-नीतिशास्त्र की रूपरेखा, पृ० ७५. २. वही. ३. वही,पृ० ७६. TA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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