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________________ नैतिक निर्णय का स्वरूप एवं विषय सामान्यतया सभी लोग एक-दूसरे के व्यवहारों की प्रशंसा और निन्दा करते हैंकिसी के आचरण को अच्छा और किसी के आचरण को बुरा कहते हैं । अक्सर हम कर्मों के शुभत्व या अशुभत्व की चर्चा करते हैं— उदाहरणार्थ, अहिंसा शुभ है, हिंसा अशुभ है तथा दान अच्छा है, चोरी बुरी है आदि । ये सभी कथन नैतिक निर्णय कहे जाते हैं । जब भी हम किसी कर्म के गुण-दोष की चर्चा करते हैं, उसके शुभत्व या अशुभत्व का विचार करते हैं या उसके औचित्य और अनौचित्य को सिद्ध करते हैं तो हमारे विचार एवं निर्णय नैतिकता से सम्बन्धित होते हैं और इन्हें नैतिक निर्णय कहा जाता है । $ १. नैतिक निर्णय का स्वरूप नैतिक निर्णय तथ्य विषयक एवं वर्णनात्मक निर्णयों से भिन्न, हैं । तथ्यविषयक निर्णय सत्ता या वस्तु के स्वरूप का विवेचन एवं और मूल्यविषयक निर्णय उसका समालोचन या मूल्यांकन करते हुए यह बताते हैं कि उसे क्या होना चाहिए । डा० सिन्हा के शब्दों में, “नैतिक निर्णय वह मानसिक व्यापार है, जो किसी कर्म को सत् या असत् घोषित करता है । नैतिक निर्णय यह निर्देश करता है कि हमारे कर्मों को कैसा होना चाहिए । नैतिक निर्णय में परमहित का ज्ञान समाविष्ट होता है । जब हम किसी ऐच्छिक कर्म को देखते हैं तो नैतिक मानदण्ड ( प्रतिमान ) से उसकी तुलना करते हैं और इस प्रकार यह निर्णय करते हैं कि वह उसके अनुसार है या नहीं । कर्म की नैतिक प्रतिमान से तुलना और उसके आधार पर निकाला गया निगमन या अनुमान नैतिक निर्णय की प्रकृति को स्पष्ट करता है । नैतिक निर्णय में तुलना, अनुमान, समालोचन और मूल्यांकन सभी समाविष्ट हैं । यद्यपि सामान्य अवस्थाओं से नैतिक निर्णय आन्तरिक अनुभव के द्वारा बिना किसी तुलना, विचार एवं समालोचन के तत्काल भी हो जाते हैं, तथापि नैतिक निर्णयों में चिन्तन, अनुमान और मूल्यांकन के तत्त्व सन्निहित रहते हैं । इस प्रकार नैतिक निर्णय आनुमानिक, समालोचनात्मक और मूल्यात्मक होते हैं ।"" पुनः वे मनोवैज्ञानिक अर्थात् हमारी भावनाओं को प्रकट करनेवाले तथा आदेशात्मक भी होते हैं । यद्यपि नैतिक निर्णय तार्किक और सौन्दर्यात्मक निर्णयों के समान मूल्यात्मक निर्णय हैं, तथापि वे तार्किक और सौन्दर्यात्मक निर्णयों से भिन्न हैं । इस भिन्नता का कारण आदर्शों की भिन्नता है। तर्कशास्त्र का विषय एवं आदर्श सत्य है और सौन्दर्यशास्त्र का विषय एवं आदर्श सुन्दरता है, जबकि नीतिशास्त्र का विषय एवं आदर्श शुभ या १. नीतिशास्त्र, पृ० ४३. Jain Education International For Private & Personal Use Only मूल्यात्मक होते वर्णन करते हैं, www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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