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निरपेक्ष और सापेक्ष नैतिकता
गुणों की भिन्नता के आधार पर आचार के नियमों की विभिन्नता स्वीकार करता है। भारतीय वर्णधर्म का विधान भी पात्र की योग्यता के आधार पर निर्भर है। योग्यता के आधार पर पात्र पर सामाजिक कर्तव्यों का दायित्व डालना ही वर्णव्यवस्था का प्रमुख उद्देश्य है। इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन एवं हिन्दू आचारदर्शन में नैतिक आचरण देश, काल और व्यक्ति सापेक्ष है। (स) बौद्ध दृष्टिकोण
इस सन्दर्भ में बौद्ध दृष्टिकोण भी जैन और वैदिक परम्पराओं के तुल्य ही है। विशुद्धिमार्ग में सपर्यन्त और अपर्यन्त शीलों के रूप में सापेक्ष नैतिक नियमों और निरपेक्ष नैतिक नियमों को स्वीकार किया गया है।' बुद्ध ने नैतिक नियमों के निर्माण में सदैव ही सापेक्ष दृष्टिकोण अपनाया है और देश-कालगत परिस्थितियों के आधार पर वे स्वयं ही परिवर्तन करते रहे हैं। विनयपिटक साक्षी है कि आचार के सामान्य नियमों के सन्दर्भ में बुद्ध का दृष्टिकोण कितना सापेक्ष था। परिनिर्वाण के पूर्व बुद्ध ने आनन्द से कहा था, "हे आनन्द, यदि संघ की इच्छा हो, तो मेरी मृत्यु के पश्चात् वह साधारण नियमों को छोड़ दे।" बौद्ध धर्म के मर्मज्ञ विद्वान् धर्मानन्द कोसम्बी लिखते हैं कि इससे यह स्पष्ट होता है कि छोटे-मोटे या मामूली नियमों को छोड़ने या देश-काल के अनुसार साधारण नियमों में हेरफेर करने के लिए भगवान् ने संघ को अनुमति दे दी थी।२ बुद्ध ने भी अवन्तिका जनपद में विचरण करनेवाले भिक्षुओं के लिए स्नान एवं उपसम्पदा सम्बन्धी नियमों को शिथिल कर दिया था। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि बुद्ध का दृष्टिकोण आचरण के सामान्य नियमों के सम्बन्ध में सापेक्ष ही था। ६३. ब्रैडले का दृष्टिकोण और जैन दर्शन
पाश्चात्य अध्यात्मवादी दार्शनिक ड्रडले का दृष्टिकोण भी जैन दर्शन के समान ही सापेक्षवादी है। वे लिखते हैं, "प्रत्येक कर्म के अनेक पक्ष होते हैं, अनेक रूप होते हैं, उसके अनेक वैचारिक दृष्टिकोण होते हैं और वह अनेक गुणों से युक्त होता है, सदैव अनेक ऐसे सिद्धान्त हो सकते हैं जिनके अन्तर्गत विचार किया जा सकता है, और इसलिए उसे ( एकान्तरूप में ) नैतिक अथवा अनैतिक मानने में कुछ कम कठिनाई नहीं होती । विश्व में ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जिसे किसी एक धारणा के अनुसार शुभ या अशुभ ठहराया जा सके।उ मेरा स्थान और उसके कर्तव्य का सिद्धान्त बताता है कि यदि नैतिक तथ्य सापेक्ष नहीं है तो कोई नैतिकता नहीं होगी । ऐसी नैतिकता जो सापेक्ष नहीं है, व्यर्थ है।
१. विसुद्धिमग्ग, माग १, पृ० १४. २. भगवान बुद्ध, पृ० १६१. ३. एथिकल स्टडीज, पृ० १९६. ४. वही, पृ० १८९.
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