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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
३. उन्नीसवें उदय में दीक्षा हेतु अयोग्य स्त्री, पुरुष एवं नपुंसकों के
प्रकारों का उल्लेख करते हुए गृहत्यागविधि एवं प्रव्रज्याग्रहण की
विधि बताई गई है। ४. बीसवें उदय में छेदोपस्थापनीयचारित्र एवं महाव्रतोच्चार की विधि का
निर्देश दिया गया है तथा सप्तमण्डलीयोग की चर्चा की गई है। ५. इक्कीसवें उदय में योगोद्वहन करने की विधि, कालग्रहण की विधि,
स्वाध्याय-प्रस्थापना की विधि, खमासमणा-योजना, कायोत्सर्ग, वंदन, संघट्टविधि, प्रवेदन-विधि, प्रतिदिन की क्रिया तथा अर्द्धवार्षिक-योग की विधि विवेचित है। इसी उदय में कालिक एवं उत्कालिक-सूत्रों में प्रत्येक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि का भी विस्तृत
उल्लेख किया गया है। ६. बाईसवें उदय में वाचना-विधि का वर्णन किया गया है। मनि किस
क्रम से सूत्रों का अध्ययन करे- इसका भी इस उदय में उल्लेख
किया गया है। ७. तेईसवें उदय में वाचनाचार्य-पदस्थापना-विधि का उल्लेख किया गया
है तथा वाचनाचार्य के योग्य मुनि के लक्षणों का निरूपण हुआ है। ८. चौबीसवें उदय में उपाध्याय-पदस्थापना-विधि उल्लेखित है। ६. पच्चीसवें उदय में आचार्य-पदस्थापना की विधि का उल्लेख किया
गया है, साथ ही इस उदय में आचार्यपद के योग्य मुनि के लक्षणों
की भी विस्तृत चर्चा की गई है। १०. छब्बीसवें उदय में मुनियों द्वारा द्वादश प्रतिमाओं के वहन करने की
प्रक्रिया का वर्णन है। ११. सत्ताईसवें उदय में साध्वियों की व्रतारोपण-विधि, अर्थात् प्रव्रज्याविधि
उल्लेखित है। १२. अट्ठाईसवें उदय में प्रवर्तिनी-पदस्थापना-विधि का उल्लेख किया
गया है। इस प्रकरण में प्रवर्तिनीपद के योग्य साध्वी के लक्षण तथा उनके द्वारा करणीय एवं अकरणीय कार्यों का भी वर्णन किया गया
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