________________
वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
शकुनरत्नावली (कथा-कोश)
इसके अतिरिक्त जिनरत्नकोश में अभयदेवसूरि के शिष्य वर्धमानसूरिकृत कथाकोश, अपरनाम शकुनरत्नावली२२ का भी उल्लेख मिलता है, किन्तु कर्ता का समय ज्ञात नहीं होने के कारण यह संशय का विषय है कि यह कृति बारहवीं शती के वर्धमानसूरि की है, या पन्द्रहवीं शती के रुद्रपल्ली-शाखा के वर्धमानसूरि की। चूँकि इन दोनों के गुरु के रूप में अभयदेवसूरि का नामोल्लेख मिलता है, इसलिए सम्यक् सूचनाओं के अभाव में यह निश्चय कर पाना कठिनतम कार्य है कि यह बारहवीं शती के वर्धमानसूरि हैं, या पन्द्रहवीं शती के। आचारदिनकर एवं स्वप्नप्रदीप ग्रन्थ में ज्योतिष सम्बन्धी पर्याप्त चर्चा मिलती है। शकुनरत्नावली में भी ज्योतिष सम्बन्धी चर्चा होने से ऐसा प्रतीत होता है कि यह कृति भी रुद्रपल्लीगच्छ के वर्धमानसूरि की ही होना चाहिए।
उपर्युक्त कृतियों के अतिरिक्त हमें रुद्रपल्लीगच्छ के वर्धमानसूरिकृत अन्य कृतियों का उल्लेख नहीं मिलता है। जहाँ तक मेरा विचार है, इतने विद्वानाचार्य की आचारदिनकर, स्वप्नप्रदोष (स्वप्नविचार), शकुनरत्नावली (कथाकोश) ही कृतियाँ होंगी-यह सम्भव नहीं है। उनकी अन्य कृतियाँ भी होगी। उनकी इन कृतियों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि उनके पास अगाध ज्ञान था, जिसके आधार पर उन्होंने अन्य कृतियों की रचना की होगी, किन्तु जानकारियों के अभाव में हम उस सम्बन्ध में कुछ कह पाने में समर्थ नहीं हैं।
अब हम वर्धमानसूरिकृत कृतियों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं प्रस्तुत शोधप्रबन्ध के आधारभूत ग्रन्थ आचारदिनकर में वर्णित विषय-सामग्री की चर्चा करेंगे। आचारदिनकर और उसकी विषयवस्तु
प्रस्तुत कृति के कर्ता रुद्रपल्ली-शाखा के अभयदेवसूरि (तृतीय) के शिष्य वर्धमानसूरि हैं। यह कृति संस्कृत एवं प्राकृत-भाषा में निबद्ध है। अनुष्टुप छंदों की अपेक्षा से इस ग्रन्थ का श्लोक-परिमाण १२५०० है।१२३ इस कृति का रचनाकाल विक्रम संवत् १४६८ तदनुसार ई. १४१२ है।
इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में ग्रन्थकार ने दस श्लोकों के माध्यम से मंगलाचरण किया है। प्रथम दो श्लोकों में आदि तीर्थंकर ऋषभदेव की स्तुति कर उन्हें नमस्कार किया गया है। तृतीय श्लोक के माध्यम से सर्वज्ञ देव को नमस्कार
१२२ (6) जिनरत्नकोश, भाग-१, पृ.-६५, (i) जिनरलकोश, भाग-१, पृ.-३६८. १२३ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, पृ.-३, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२.
Jain Education International
-
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org