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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
दीक्षायोग-विधि
यह भी संकलित की गई कृति है।”३ इसका सम्पादन योगीराज शान्तिविमलगणी ने किया है तथा यह प्राचीन गुजराती भाषा में निबद्ध है। इस कृति में तपागच्छीय-परम्परानुसार विधियों का संग्रह किया गया है। इस ग्रन्थ में निम्न विधि-विधानों का उल्लेख है- दीक्षा ग्रहण करने की विधि, उपस्थापना-विधि, व्रतोच्चारण-विधि। इसमें सम्यक्त्वारोपण, ब्रह्मचर्य-व्रतारोपण, बीसस्थानक-तप, ज्ञानपंचमी-तप, रोहिणी-तप, मौन एकादशी-तप, बारहव्रत, आदि तपों एवं व्रतों को ग्रहण करने की विधि, लोच करने की विधि, आवश्यकसूत्र के योग की विधि, दशवैकालिकसूत्र के योग एवं मांडलीयोग सम्बन्धी यंत्र (कोष्ठक) भी दिए गए हैं। उपर्युक्त सभी विषयों की चर्चा हमें आचारदिनकर में भी मिलती है। उपधान-विधि
यह एक संकलित कति है। इसका संयोजन तपागच्छीय रामचन्द्रसरिजी के शिष्य पंन्यास श्री कान्तिविजयजी गणि ने किया है। यह कृति गुजराती में रचित है। इसमें जीतव्यवहार के अनुसार उपधान-विधि वर्णित की गई है। आचारदिनकर के व्रतारोपण-संस्कार में भी इस विषय का उल्लेख मिलता है। विधिसंग्रह
. पू. प्रबोधसागरजी के शिष्य पू. प्रमोदसागरसूरिजी द्वारा संगृहीत यह कृति५ गुजराती में रचित है। इसमें दीक्षा संबंधी, योगवहन संबंधी, पदप्रदान संबंधी एवं व्रत-तप-ग्रहण संबंधी विधियों का उल्लेख है।
इस प्रकार की संकलित कृतियाँ अन्य भी प्रकाशित हुईं हैं। उन सभी कृतियों का अवलोकन करने से प्रतीत होता है कि प्रायः इन पृथक्-पृथक संस्करणों में अपनी-अपनी परम्परा या समुदाय की अपेक्षा आंशिक परिवर्तन देखे जाते हैं, किन्तु मूलभूत आधार विधिमार्गप्रपा और आचारदिनकर का ही प्रतीत होता है।
कृतियण का अवलोकन करने
१३ दीक्षायोग विधि, सं.: शान्तिविमलगणि, श्री अमृत-हिम्मत-शान्तिविमलजी, जैनग्रन्थमालावती, श्री जसवंतलाल
गिरधरलाल शाह, कुबेरनगर, अहमदाबाद, वि.स. २०१८. " उपधान विधि, संयोजन पंन्यास श्रीकान्तिविजयजी, श्री सिहोर जैन संघ-ज्ञानखाता, वि.स. २५०२ x विधिसंग्रह, संकलनकर्ताः प्रमोदसागरसूरि, आगमोद्धारक ज्ञानशाला, एम.एम. जैन सोसायटी, वरसोडानी चाल, साबरमती, अहमदाबाद.
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