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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
१०. कर्णवेध संस्कार
१०. प्रतिमा - उद्वहन-विधि
११. चूड़ाकरण - संस्कार
११. व्रतिनीव्रतदान - विधि (साध्वी की प्रव्रज्या - विधि)
१२. उपनयन संस्कार
१२. प्रवर्तिनी - पदस्थापन - विधि
१३. महत्तरा - पदस्थापन - विधि
१३. विद्यारम्भ - संस्कार १४. विवाह - संस्कार
१४. अहोरात्रिचर्या - विधि
१५. व्रतारोपण - संस्कार ।
१५. ऋतुचर्या-विधि
१६. अन्त्य - संस्कार
१६. अन्त-संलेखना - विधि
ग्रन्थ के अन्त में " व्यवहार परमार्थ" शीर्षक के माध्यम से संस्कारों के प्रयोजनों को अभिव्यक्त किया गया है तथा इसके बाद ग्रन्थ - प्रशस्ति दी गई है। यहाँ मात्र इस ग्रन्थ की सामान्य जानकारी देते हुए चालीस उदयों का नामोल्लेख किया गया है, इनका विस्तृत वर्णन हमनें अग्रिम तृतीय अध्याय " वर्धमानसूरि का व्यक्तित्व" में किया है।
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आचारदिनकर से परवर्ती संस्कारों से सम्बन्धित श्वेताम्बर - परम्परा का साहित्य
प्रतिष्ठाकल्प
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इस कृति के कर्त्ता हीरविजयसूरि के शिष्य सकलचन्द्रगणी हैं। यह कृति संस्कृत भाषा में निबद्ध है। गंथकार ने यह कृति प्राचीन आचार्यों द्वारा विरचित प्रतिष्ठाकल्पों का आधार लेते हुए बनाई है। यह उल्लेख ग्रन्थकार ने इस ग्रन्थ के अन्त में किया है। इस ग्रन्थ में जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा एवं पूजाविधि का उल्लेख है। इस कृति का रचनाकाल वि. स. १६३० है ।
कल्याणकलिका
यह कृति तपागच्छीय श्री विजयसिद्धसूरि के प्रशिष्य पं. कल्याणविजयगणि द्वारा रचित है। उपलब्ध कृति स्वोपज्ञ गुजराती भाषा की टीका सहित है। यह ग्रन्थ दो भाग में विभक्त है। प्रथम खण्ड में प्रतिष्ठा-पद्धति की चर्चा की गई है तथा द्वितीय खण्ड ' प्रतिष्ठा - विधि का उल्लेख है।
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1ος प्रतिष्ठाकल्प, सकलचन्द्रगणीकृत, सेठ नेमचन्द मेलापचंद झवेरी, जैनवाड़ी, उपाश्रय ट्रस्ट, गोपीपुरा, सुरत, वि.
स. २०४२.
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१०६ कल्याणकलिका, (प्रथम भाग ), श्री कल्याणविजयजी शास्त्रसंग्रह समिति, जालोर (राज.), द्वितीय आवृत्ति १६८७. कल्याणकलिका, (द्वितीय भाग), श्री कल्याणविजयजी गणिवर, श्री आदिनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक संघ चिकपेट, बैंगलोर, प्रकाशन वर्ष वि.स. २०५१.
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