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भूमिका
संस्कार शब्द का अर्थः
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संस्कार शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत की 'कृञ्' धातु में 'सम्' उपसर्ग एवं ‘घञ्' प्रत्यय के योग से हुई है, अर्थात सम् + कृ+घञ् संस्कार | इस शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में किया जाता है। मीमांसक यज्ञांगभूत पुरोडाश, आदि की विधिवत् शुद्धि से इसका आशय समझते हैं। अद्वैत वेदान्ती शारीरिक क्रियाओं के जीव पर मिथ्या आरोपण को संस्कार मानते हैं। नैयायिक - भावों को व्यक्त करने की आत्म - व्यञ्जक - शक्ति को संस्कार कहते हैं, जिसका परिगणन वैशेषिक दर्शन में चौबीस गुणों के अन्तर्गत किया गया है। बौद्धदर्शन में संस्कार अविद्याजन्य चैतसिक अवस्थाएँ हैं।
साध्वी मोक्षरत्ना श्री
संस्कृत - साहित्य में इस शब्द का प्रयोग शिक्षा, संस्कृति, प्रशिक्षण, सौजन्य, पूर्णता, व्याकरण सम्बन्धी शुद्धि, धार्मिक कृत्य, संस्करण या परिष्करण की क्रिया, प्रभावशीलता, प्रत्यास्मरण का कारण, स्मरणशक्ति पर पड़ने वाला प्रभाव, अभिमंत्रण, आदि अनेक अर्थों में हुआ है।
संस्कार शब्द का सबसे उपयुक्त अंग्रेजी पर्यायवाची शब्द " सेक्रामेन्ट" है, जिसका अर्थ है- वे धार्मिक विधि-विधान या क्रियाएँ, जो आन्तरिक तथा आत्मिक-विशुद्धि की प्रतीक मानी जाती हैं। किसी वचन की प्रामाणिकता की पुष्टि, रहस्यपूर्ण महत्व की क्रिया, पवित्र प्रभाव तथा धार्मिक प्रतीक भी " सेक्रामेन्ट” शब्द के अर्थ हैं।
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सामान्यतः, संस्कार वह है, जिसके होने से कोई पदार्थ या व्यक्ति किसी कार्य के लिए योग्य हो जाता है; अर्थात् संस्कार वे क्रियाएँ एवं विधियाँ हैं, जो व्यक्ति को किसी कार्य को करने की आधिकारिक - योग्यता प्रदान करती है। शुचिता का सन्निवेश, मन का परिष्कार, धर्मार्थ- सदाचरण, शुद्धि - सन्निधान, आदि ऐसी योग्यताएँ हैं, जो शास्त्रविहित क्रियाओं के करने से प्राप्त होती हैं। संस्कार शब्द
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