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साध्वी मोक्षरत्ना श्री
का, अनुयोग की अनुज्ञा हेतु नन्दीपाठ का श्रवण, आचार्यपदस्थापना के समय राजा के चिह्न-विशेष, शिविका, आदि का वर्णन हुआ है।
चौथे प्रकरण में जिनचैत्य का निर्माण करने के लिए भूमि की परीक्षा-विधि का उल्लेख है।
पांचवें प्रकरण में शिलान्यास की विधि बताई गई है।
छठवें प्रकरण में प्रतिष्ठा-विधि का उल्लेख है। इसमें शिल्पी, इन्द्र एवं आचार्य के गुणों का वर्णन भी है, साथ ही अधिवासनामण्डप, स्नानमण्डप, तोरण-पताकादिमण्डप की अलंकरण-सामग्री का वर्णन है।
सातवें प्रकरण में पादपीठ की प्रतिष्ठा-विधि है। आठवें प्रकरण में जिनचैत्य के मुख्य द्वार की प्रतिष्ठा-विधि का वर्णन
नौवें प्रकरण में जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा-विधि का उल्लेख है। इसमें क्षेत्रशुद्धि, आत्मरक्षा, भूतबलि, अभिमंत्रण, सकलीकरण, दिग्बन्धन, बिम्बस्नपन, नन्द्यावर्त्तमण्डल आलेखन एवं पूजन, सहज गुण-स्थापन, अधिवासना, अंजनशलाका, जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा, प्रतिष्ठादेवता का कायोत्सर्ग, आदि विविध विधि-विधान निरूपित हुए हैं। इसके अतिरिक्त इसमें लेप्यमय प्रतिमा की प्रतिष्ठा-विधि एवं अम्बिकादि देवी-देवताओं की प्रतिष्ठा-विधि भी अलग से बताई गई है।
दसवें प्रकरण में हृत्प्रतिष्ठा की विधि निरूपित है। ग्यारहवें प्रकरण में चूलिका की प्रतिष्ठा-विधि का प्रतिपादन किया गया
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बारहवें प्रकरण में कलश, ध्वजा और धर्मचक्र की प्रतिष्ठाविधि उल्लेखित
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तेरहवें प्रकरण में जीर्णोद्धार की विधि का वर्णन है। चौदहवाँ प्रकरण प्रतिष्ठा-उपयोगी मुद्राविधि से सम्बन्धित है। पन्द्रहवें प्रकरण में प्रायश्चित्त-विधि बताई गई है।
सोलह से उन्नीस प्रकरणों में अर्हदादि का वर्णादि-क्रम कहा गया है। इसके साथ ही इन प्रकरणों में तीर्थंकरों की जन्मराशि, जन्मनक्षत्र, आदि का वर्णन
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