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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 63 यतिदिनकृत्य यह हरिभद्रसूरि की कृति मानी जाती है। इसमें श्रमणों की दैनन्दिक प्रवृत्तियों के विषयों का निरूपण है। इस कृति का रचनाकाल विक्रम की आठवीं शती है। आचारदिनकर में भी साधु-दिनचर्या सम्बन्धी एक प्रकरण है, जिसकी विषयवस्तु का आधार यह ग्रन्थ माना जा सकता है। इस कृति का भी उल्लेख हमें जैन-साहित्य का बृहत् इतिहास में मिलता है। निर्वाणकलिका इस ग्रन्थ०° के कर्ता श्रीपादलिप्तसूरि हैं। डॉ. सागरमलजी जैन के अनुसार ये पादलिप्तसूरि आर्यरक्षित (द्वितीय शती) के समकालीन एवं उनके मामा पादलिप्तसूरि से भिन्न हैं। ये सम्भवतः दसवीं, ग्यारहवीं शती के आचार्य हैं। यह कृति संस्कृत-गद्य में है और इक्कीस प्रकरणों में विभक्त है। इसमें मुख्य रूप से प्रतिष्ठा-विधि का विवेचन किया गया है। हरिभद्र के षोडशक, पंचाशक, आदि ग्रन्थों के बाद में विधि-विधान से सम्बन्धित सामग्री हमें इसी ग्रन्थ में मिलती है। निर्वाणकलिका की विषयवस्तु का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में मंगलाचरण, विषय-निरूपण एवं ग्रन्थ-प्रयोजन हेतु दो श्लोक दिए गए हैं। तत्पश्चात् प्रथम प्रकरण में नित्यकर्म की विधि सम्बन्धी चर्चा की है। उसमें देहशुद्धि, द्वारपूजा, पूजागृह में प्रवेश करने की विधि, करन्यास, भूतशुद्धि, मान्त्रिक-स्नान, जिनपूजा, गुरुपूजा, चतुर्मुख सिंहासन-पूजा, अर्हत् एवं सिद्ध परमात्मा की मूर्ति के न्यास की विधि, आह्वानादि की विधि, देवस्नानादि की विधि, पंचपरमेष्ठी-यंत्र की पूजा-विधि, आरती, मंगल दीपक, तीन प्रकार के जाप, गृहदेवता की पूजा, बलिप्रदान, आदि के विधान निर्दिष्ट हैं। दूसरे प्रकरण में “दीक्षाविधि" का प्रतिपादन है। इसमें गृहस्थ की मांत्रिक दीक्षा का, सर्वतोभद्रमण्डल का और अष्टसमयादि धारण का विधान बताया गया तीसरे प्रकरण में आचार्यपदाभिषेक की विधि कही गई है। इस प्रकरण में मण्डपस्वरूप का, वैदिकास्वरूप का, आठ प्रकार के कुम्भ का, आठ प्रकार के शंख १०० निर्वाणकलिका, पादलिप्तसूरिकृत, मोहनलाल भगवानदास जवेरी, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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