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________________ 60 साध्वी मोक्षरत्ना श्री तथा शेष में ५०-५० पद्य हैं। यह विधि विधान संबंधी विषयों का मौलिक ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में गृहस्थ द्वारा, साधु द्वारा एवं गृहस्थ तथा साधु - दोनों द्वारा आचरणीय विधि-विधान उल्लेखित हैं। इस ग्रन्थ का रचनाकाल आठवीं शताब्दी है। जैन आचार एवं कर्मकाण्ड के सन्दर्भ में यह ग्रन्थ एक महत्वपूर्ण कृति है। प्रस्तुत कृति में वर्णित उन्नीस पंचाशकों के नाम इस प्रकार हैं पहले पंचाशक में श्रावकधर्म को ग्रहण करने की विधि का उल्लेख है। दूसरे पंचाशक मे जिनदीक्षा ग्रहण करने की विधि प्रज्ञप्त है। तीसरे पंचाशक में चैत्यवंदन करने की विधि का निरूपण है। चौथे पंचाशक में पूजा करने की विधि दर्शित की गई है। पाँचवें पंचाशक में प्रत्याख्यान की विधि बताई गई है। छठवें पंचाशक में स्तवन की विधि निर्दिष्ट की गई है। सातवें पंचाशक में जिनभवन-निर्माण-विधि का प्रतिपादन किया गया है। आठवें पंचाशक में जिनबिम्ब - प्रतिष्ठा की विधि प्रस्तुत की गई है। नौवें पंचाशक में यात्रा करने की विधि कही गई है। दसवें पंचाशक में उपासक - प्रतिमा - विधि का निरूपण है। ग्यारहवें पंचाशक में साधुधर्म - विधि का उल्लेख है। बारहवें पंचाशक में साधु- सामाचारी की विधि निरूपित है। तेरहवें पंचाशक में पिण्डविधान - विधि निर्दिष्ट है। चौदहवें पंचाशक में शीलांगविधान - विधि का प्रतिपादन है। पन्द्रहवें पंचाशक में आलोचना - विधि का प्रस्तुतिकरण है। सोलहवें पंचाशक में प्रायश्चित्त - विधि का वर्णन है । सत्रहवें पंचाशक में कल्पविधि का उल्लेख है। अठारहवें पंचाशक में भिक्षुप्रतिमा - कल्प-विधि का वर्णन है। उन्नीसवें पंचाशक में तप - विधि का निरूपण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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