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________________ वर्षमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन ७. आराधनापताका इस कृति के रचनाकार वीरभद्र हैं। यह ग्रन्थ जैन-महाराष्ट्री में ६६० पद्यों में निबद्ध है। इस ग्रन्थ का रचनाकाल वि.सं.-१०७८ है। इस कृति का उल्लेख हमें जैन-साहित्य के बृहत् इतिहास (भाग-४) में मिलता है। ८. पंचसूत्रक इस कृति के रचनाकार कौन हैं ?- यह जानकारी तो हमें उपलब्ध नहीं है, किन्तु यह सूत्र पाँच भागों में विभक्त है। इन पाँच सूत्रों में एक सूत्र प्रव्रज्या ग्रहण करने की विधि से सम्बन्धित है। ___ हरिभद्रसूरि ने इस पर ८८० श्लोक-परिमाण की एक टीका लिखी है। इन्होंने मूल कृति का नाम पंचसूत्रक लिखा है, जबकि न्यायाचार्य यशोविजयजी ने इसे पंचसूत्री कहा है। इस पर मुनिचन्द्रसूरि तथा किसी अज्ञात लेखक ने भी एक-एक अवचूरि लिखी है। इस कृति का उल्लेख हमें जैन-साहित्य का बृहत् इतिहास (भाग-४) में मिलता है। ६. प्रतिष्ठाकल्प भद्रबाहु द्वारा विरचित प्रतिष्ठाकल्प नाम के इस ग्रन्थ का उल्लेख हमें सकलचन्द्रगणीकृत प्रतिष्ठाकल्प के अन्त में मिलता है। नाम के अनुरूप इस कृति में कर्ता ने जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा-विधि, आदि का उल्लेख किया होगा, ऐसा हम मान सकते हैं। वर्तमान में यह कृति उपलब्ध नहीं है। सम्भावना यह है कि यह कृति वराहमिहिर के भाई भद्रबाहु की हो सकती है, जिनका काल सातवीं शती है। ___इसी नाम से सम्बन्धित अन्य कृतियाँ भी हमें मिलती हैं, यथारुद्रपल्लीगच्छीय हरिभद्रसूरिविरचित प्रतिष्ठाकल्प (वि.सं.-१५१०) कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरिविरचित प्रतिष्ठाकल्प, गुणरत्नाकरसूरि विरचित प्रतिष्ठाकल्प (वि.स. की पन्द्रहवीं शती), किन्तु हमें ये सभी कृतियाँ उपलब्ध नहीं हो पाईं, अतः इनके सम्बन्ध में अधिक कुछ कहना सम्भव नहीं है। इन सब कृतियों का उल्लेख हमें जैन-साहित्य का बृहत् इतिहास (भाग-४) में मिलता है। १०. पंचाशक-प्रकरण आचार्य हरिभद्रसूरि की यह कृति महाराष्ट्री-प्राकृत में निबद्ध है। इस कृति में उन्नीस पंचाशक संगृहीत हैं, जिसमें दूसरे में ४४ और सत्रहवें में ५२ पंचाशक प्रकरण, अनु. डॉ. दीनानाथ शर्मा, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, प्रथम संस्करण १६६७ Jain Education International . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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