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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन विवेचन है। इस ग्रन्थ का रचनाकाल विक्रम की पाँचवी - छठवीं शती है। इस ग्रन्थ की समाधिमरण की विधि की कुछ समरूपता आचारदिनकर से है । ३. आदिपुराण :३ इस ग्रन्थ े े के रचनाकार पंचस्तुपान्वय वीरसेन के शिष्य जिनसेनाचार्य हैं। यह कृि संस्कृत भाषा में गुम्फित है। इस कृति का रचनाकालं विक्रम की नौवीं शती है। यह ग्रन्थ ४७ पर्वों में विभाजित है, जिनमें से प्रारम्भ के ४२ पर्व और तैंतालिसवें पर्व के तीन श्लोक जिनसेनाचार्य द्वारा विरचित हैं, शेष पर्वों के १६२० श्लोक उनके शिष्य गुणसेन द्वारा रचित हैं। इस ग्रन्थ के ४७ पर्वों में विभिन्न विषयों का निरूपण हुआ है, किन्तु इसके ३८, ३६ एवं ४०वें पर्व में विशेष रूप से संस्कारों का वर्णन किया गया है। आचारदिनकर में वर्णित संस्कारों का दिगम्बर- परम्परा से तुलनात्मक अध्ययन हेतु यह ग्रन्थ अत्यन्त सहायभूत रहा है। दिगम्बर - परम्परा में सम्भवतः यह प्रथम ग्रन्थ है, जिसमें हमें विस्तृत रूप से संस्कार सम्बन्धी विधि-विधानों का उल्लेख मिलता है। ४. हरिवंशपुराण इस कृति के रचनाकार पुन्नाटसंघ के आचार्य जिनसेन हैं। यह महाकाव्य की शैली पर रचा गया है और यह ब्राह्मण-पुराणों के अनुसरण पर लिखा गया है। यह सम्पूर्ण ग्रन्थ ६६ सर्गों में विभाजित है, जिनका ग्रन्थ- परिमाण १२ हजार श्लोक है। इस ग्रन्थ का रचनाकाल शक सं. ७०५ तदनुसार विक्रम सं. ८४०, अर्थात् विक्रम की ६वीं शती है। इस ग्रन्थ का मुख्य विषय हरिवंश में उत्पन्न हुए २२वें तीर्थंकर नेमीनाथ के साथ-साथ वासुदेव कृष्ण के चरित्र का वर्णन करना है। इसके कुछ सर्गों में हमें कुछ संस्कारों, यथा- गर्भाधान, जातकर्म, नामकरण, कर्णछेदन, विद्यारम्भ, उपनयन, विवाह, अन्त्येष्टि, आदि का भी वर्णन मिलता है। ५. रत्नकरण्ड श्रावकाचार कुछ विद्वानों के अनुसार यह कृति आप्तमीमांसा आदि के रचयिता समन्तभद्र की है, किन्तु अधिकांश विद्वानों का इस सम्बन्ध में मतभेद भी है। इसे 53 ८३ आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनु.: डॉ. पन्नालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, १८ इंस्टीट्यूशनल एरिया, लोदी रोड़, दिल्ली, सातवां संस्करण २००० हरिवंशपुराण, अनु.: डॉ. पन्नालाल जैन, भारतीय विद्यापीठ प्रकाशन, पंचम संस्करण १६६६ रत्नकरण्ड श्रावकाचार : अनु.: पं. सदासुखदासजी कासलीवाल, पं. सदासुख ग्रन्थमाला, अजमेर, द्वितीय संस्करण १६६७ ६४ ८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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