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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन विद्यारम्भ - संस्कार से संस्कारित किया जाना आवश्यक है। इस प्रकार इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य बालक को विद्याध्ययन करवाना है। दिगम्बर - परम्परा में भी यह संस्कार शास्त्राध्ययन करवाने के है। वैदिक - परम्परा एवं उद्देश्य से किया जाता १४. विवाह - संस्कार इस संस्कार का प्रयोजन जनसमुदाय के समक्ष स्त्री एवं पुरुष को वैवाहिक सम्बन्ध से जोड़ना है, क्योंकि जनसामान्य के समक्ष किए जाने वाले वैवाहिक सम्बन्ध से व्यक्ति निन्दा का पात्र नहीं बनता है तथा वह सम्बन्ध सबको मान्य भी होता है। आचारदिनकर में भी कहा गया है- "यह वैवाहिक-कर्म व्यक्तियों के समक्ष इसलिए किया जाता है कि निन्दा, आदि से बचा जा सके, साथ ही वह यौनसम्बन्ध विहित माना जा सके""", क्योंकि विवाह के अभाव में स्थापित यौनसम्बन्ध लोक में पापाचार माने जाते हैं तथा उनके इस सम्बन्ध से प्राप्त सन्तान को मान्यता प्राप्त नहीं होती है, अतः उनके मध्य यौनसम्बन्ध की पुष्टि करने के उद्देश्य से यह संस्कार किया जाता है। दिगम्बर एवं वैदिक - परम्परा में भी इस संस्कार का उद्देश्य स्त्री एवं पुरुष के मध्य यौनसम्बन्ध स्थापित करना ही है। १५. व्रतारोपण - संस्कार इस संस्कार का प्रयोजन बालक के जीवन को धर्ममय बनाना है। व्यक्ति चाहे कितना ही यश, वैभव, विद्या, आदि प्राप्त कर ले, किन्तु जब तक वह धर्म-आचरण नहीं करता है, कुछ त्याग तप नहीं करता है, तब तक उसका जीवन व्यर्थ है, क्योंकि उसकी ये सारी उपलब्धियाँ उसे मात्र भौतिक सुख प्रदान कर सकती हैं, वे उसे मोक्षसुख प्रदान करने में समर्थ नहीं हैं। जैसा कि आचारदिनकर में भी कहा गया है- “ जिसने सब कला सीखी हो, किन्तु धर्मकला न सीखी हो, तो उसके लिए सब कलाएँ व्यर्थ हैं।"२ अतः इस संस्कार का प्रयोजन व्यक्ति को धर्मकला का ज्ञान प्रदान करना है। दिगम्बर - परम्परा में व्रतावतरण - संस्कार का प्रयोजन व्यक्ति को जिनेन्द्रदेव एवं गुरु की साक्षी में मधु, मांस, मद्य तथा हिंसादि ५१ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, पृ. ३६०, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. ५२ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-पन्द्रहवां, पृ. ४२, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. 39 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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