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________________ 390 साध्वी मोक्षरत्ना श्री विविध संस्कारों के माध्यम से व्यक्ति में सदाचार, विनय, क्षमा, दया, सत्य, अहिंसा आदि गुणों का विकास होता है, जो परिवार, समाज, राष्ट्र एवं विश्व में शान्ति स्थापित करने में सहयोगी होते हैं। आज हम देखते हैं कि व्यक्ति छोटी-छोटी बातों को लेकर कोर्ट-कचहरी तक पहुँच जाते हैं, एक-दूसरे की हत्या तक कर देते हैं- यह सब कुसंस्कारों का ही प्रभाव है। व्यक्ति जब तक स्वयं के क्षुद्र स्वार्थों से ऊपर नहीं उठ पाएगा, तब तक वह समाज, राष्ट्र एवं विश्व कल्याण के महान कार्यों को कैसे कर पाएगा। व्यक्ति समाज की ही एक इकाई है। व्यक्तियों से मिलकर ही समाज का निर्माण होता हैं। समाज का चहुंमुखी विकास तभी सम्भव है, जब व्यक्ति का चहुंमुखी विकास हो और व्यक्ति के चहुँमुखी विकास के लिए उसका सुसंस्कारी होना अत्यन्त अनिवार्य है। आचारदिनकर में वर्णित चालीस संस्कार न केवल व्यक्ति के वैयक्तिक, पारिवारिक जीवन हेतु ही आवश्यक हैं, वरन् उसके धार्मिक एवं आध्यात्मिक जीवन हेतु भी उपयोगी हैं। आचारदिनकर में वर्णित विविध संस्कारों की क्या उपयोगिता है एवं वर्तमान समय में उनकी क्या प्रासंगिकता है, इसकी चर्चा हम निम्न बिन्दुओं के माध्यम से करेंगेगर्भाधान-संस्कार गर्भ को स्खलन से बचाने एवं उसका संरक्षण करने हेतु यह संस्कार उपयोगी है। पाँचवें माह में किया जाने वाला यह संस्कार गर्भवती तथा उसके स्वजनों को यह सूचित करता था कि वह गर्भवती है, ताकि स्वजन गर्भवती स्त्री की एवं गर्भ की सम्यक् प्रकार से सुरक्षा कर सकें, क्योंकि उनकी थोड़ी-सी भी असावधानी गर्भस्थ बालक पर कुप्रभाव डाल सकती है। कल्पसूत्र की टीका में भी हमें इस सम्बन्ध में उल्लेख मिलता है। जब त्रिशला क्षत्रियाणी के गर्भ में महावीर स्वामी का जीव था, तब वह उस गर्भ का पालन किस प्रकार से करती थी, उसे बताते हुए कहा गया है कि उसने अत्यन्त शीत, अत्यन्त उष्ण, अत्यन्त तीक्ष्ण, अत्यन्त कटुक, अत्यन्त कसैले, अत्यन्त खट्टे, अत्यन्त मीठे, अत्यन्त स्निग्ध, अत्यन्त रूक्ष भोजन का त्याग कर दिया। वह ऋतुओं के अनुकूल सुखकारी भोजन करती तथा वस्त्र, गन्ध और मालाओं को धारण करती हुई रोग, शोक, मोह, भय और त्रास रहित होकर रहने लगी, इत्यादि। इससे फलित होता है कि गर्भवती को न केवल खाने-पीने का ही ध्यान रखना चाहिए, वरन् उठने-बैठने में भी बहुत सावधानी रखनी चाहिए, किन्तु वर्तमान में गर्भवती स्त्रियाँ इन बातों की तरफ कोई ध्यान नहीं देती हैं, जिसका परिणाम यह होता है कि उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है तथा रोगोपचार के लिए उन्हें औषधियों का सेवन करना पड़ता है, जो बालक पर बहुत बुरा प्रभाव डालती हैं। पथ्यों का सेवन करने से इन दुष्परिणामों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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