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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन अध्याय-७ उपसंहार विविध संस्कारों की मूल्यवत्ता और वर्तमान समय में उनकी प्रासंगिकता - जीवन में संस्कारों का अत्यन्त महत्व है। संस्कारों के अभाव में मनुष्य पशुवत् होता है। जैसे पशु यह नहीं जानते हैं कि उनकी क्या मर्यादाएँ हैं, उन्हें कैसे रहना चाहिए, कैसे जीवन-यापन करना चाहिए, ठीक उसी प्रकार संस्कार विहीनमनुष्य भी इन सबसे अनभिज्ञ रहता है। उसकी समस्त क्रियाएँ, प्रवृत्तियाँ पशुओं जैसी ही होती हैं। फिर भी जहाँ पशु का जीवन अपनी प्रकृति से निर्धारित होता है, वही संस्कारहीन मानव तो मानवीय प्रकृति का उल्लंघन कर पशु से भी निम्न स्थिति में जीता है। 389 संस्कार एक ऐसा माध्यम है, जो व्यक्ति के अन्दर बीजरूप में रहे हुए गुणों को वृक्ष के समान पल्लवित कर देता है। बीज को जब उचित वातावरण, खाद्य, जल आदि का संयोग मिलता है, तो वह बीज वृक्ष का रूप धारण कर लेता है। ठीक उसी प्रकार संस्कारों का संयोग मिलने पर व्यक्ति के अन्दर रही हुई योग्यताएँ भी प्रकट हो जाती हैं। जैसे विभिन्न प्रकार की मिट्टी को विधानानुसार संस्कारों द्वारा शोधकर उससे लोहा, ताँबा, सोना आदि बहुमूल्य धातुएँ प्राप्त की जाती हैं, जिस प्रकार आयुर्वेदिक रसायन बनाने वाले औषधियों को कई प्रकार के रसों में मिश्रित कर उन्हें गजपुट, अग्निपुट विधियों द्वारा कई-कई बार तपाकर संस्कारित कर उनसे मकरध्वज एवं अन्यान्य चमत्कारी औषधियों का निर्माण करते हैं, ठीक उसी प्रकार मनुष्य के लिए भी समय-समय पर विभिन्न धार्मिक उपचारों, संस्कारों का विधान करके उन्हें सुसंस्कारित बनाया जाता है, जिससे कि वह अपने में निहित सद्गुणों या मानवीय गुणों को प्राप्त कर सके । Jain Education International इस प्रकार मानव - शिशु के उज्जवल भविष्य के लिए उसका सुसंस्कारी होना अत्यन्त अनिवार्य है। संस्कारों के अभाव में उसका जीवन मुरझाए हुए पौधे के समान होता है, जो उचित वातावरण के अभाव में यथाशीघ्र ही अपने अस्तित्व को समाप्त कर देता है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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