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________________ 332 साध्वी मोक्षरत्ना श्री आचारदिनकर में वर्धमानसूरि ने इसकी निम्न विधि प्रवेदित की हैशान्तिक-कर्म वर्धमानसूरि के अनुसार शान्तिककर्म हेतु सर्वप्रथम बृहत्स्नात्रविधि करें। इसके लिए सर्वप्रथम स्नात्रपीठ पर शान्तिनाथ भगवान् की प्रतिमा स्थापित करें। तदनन्तर अर्हत्कल्पविधि से परमात्मा की पूजा करें। तत्पश्चात् बृहत्स्नात्रविधि के अनुसार कुसुमांजलि अर्पण करें। तदनन्तर परमात्मा के समक्ष उत्तम धातु के सात पीठों को स्थापित करके उन पर क्रमशः पंचपरमेष्ठी, दस दिक्पाल, बारह राशियों, अट्ठाईस नक्षत्रों, नवग्रहों, सोलह विद्यादेवियों तथा गणपति-कार्तिकेय-क्षेत्रपालपुरदेवता एवं चतुर्निकाय देवों की स्थापना करें तथा विधिपूर्वक उनकी पूजा करें। सातों ही पीठों की पूजा किन-किन मंत्रों से करें? इनका उल्लेख मूलग्रन्थ में किया गया हैं। तत्पश्चात् इन सप्तपीठों से सम्बन्धित देवी-देवताओं को संतुष्ट करने हेतु हवन करें। हवन हेतु आहुति तथा समिधाएँ किस प्रकार की होनी चाहिए, इसका भी वहाँ उल्लेख किया गया है। तत्पश्चात् बृहत्स्नात्र विधि के अनुसार स्नात्रपूजा करें। तदनन्तर स्नात्रजल को एकत्रित कर उसमें सर्व तीर्थों के जल को मिलाकर विधिपूर्वक शान्तिकलश भरें। शान्तिकलश भरने के पश्चात् गृहस्थ गुरु उस शान्तिकलश को शान्तिदण्डक के पाठ से आभिमंत्रित करे। तत्पश्चात् शान्ति कलश के उस जल से शान्तिककर्म करवाने वाले को तथा उसके परिवार को अभिसिंचित करे। तत्पश्चात् दिक्पाल आदि का विसर्जन करे। यह शान्तिककर्म की विधि है। तदनन्तर शान्तिककर्म कब-कब किया जाना चाहिए तथा शान्तिककर्म करने से क्या फल मिलता है, इसका उल्लेख आचारदिनकर में वर्धमानसूरि ने किया है। तत्पश्चात् ग्रह एवं नक्षत्र शान्ति की विधि बताई गई है। इसमें सर्वप्रथम यह बताया गया है कि ग्रह एवं नक्षत्र शान्ति कब करनी चाहिए। तदनन्तर नक्षत्र-शान्ति की विधि बताई गई है। इस विधि में प्रत्येक नक्षत्र के स्वामी की स्थापना कर उनकी विधि पूर्वक पूजा तथा हवन किया जाता है। इस विधि में विशेष रूप से मूल एवं आश्लेषा नक्षत्र की शान्ति का वर्णन हुआ है। तदनन्तर लोकाचार के अनुसार स्नानादि द्वारा की जाने वाली नक्षत्र-शान्ति की विधि बताई गई है। इसमें भी किस नक्षत्र की शान्ति हेतु किन-किन वस्तुओं से वासित जल से स्नान करें, इसका निर्देश दिया गया है। जैसे- अश्विनी नक्षत्र की शान्ति के लिए मदयन्ती, गन्ध, मदनफल, वच एवं मधु से वासित जल से स्नान करना चाहिए, भरणी नक्षत्र की शान्ति के लिए सफेद सरसों, चीड़ के वृक्ष एवं वच से वासित जल से स्नान करें ...............इत्यादि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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