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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 321 नवीन बिम्ब की प्रतिष्ठा के इस अवसर पर नंद्यावर्त्त के आलेखन एवं उसके पूजन का भी विधान वर्धमानसूरि ने विस्तार से बताया है। नंद्यावर्त में आठ पदों एवं विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा के अनन्तर बिम्ब का नेत्रोन्मीलन, अर्थात् अंजनशलाका एवं स्थिरीकरण किया जाता है। सर्वसंघ उसकी महापूजा करते है एवं बिम्ब की आरती करके नैवेद्य आदि चढ़ाकर भूतबलि दी जाती है। फिर यह बिम्ब सुप्रतिष्ठित रहे- ऐसी कामना की जाती है। तदनन्तर इस प्रतिष्ठा-महोत्सव में कार्य करने वालों को वस्त्राभूषण आदि प्रदान किए जाते है। इस प्रकार बिम्ब की प्रतिष्ठा सम्पन्न होने पर उसकी प्रतिदिन स्नात्रपूजा की जाती है। स्नात्रपूजा को विभिन्न क्रियाओं एवं उनके मंत्रों का उल्लेख भी यहाँ वर्धमानसूरि ने किया है। फिर प्रतिष्ठा-विधि के अन्त में दिक्पाल एवं ग्रहों के विर्सजन की विधि बताई गई हैं और तीन, पाँच, सात या नौ दिन के बाद प्रतिमा के कंकणमोचन की क्रिया करें- इसका उल्लेख किया गया है। साथ ही कंकणमोचन के अवसर पर क्या-क्या क्रियाएँ करें? इसका भी उल्लेख किया गया ___ मूलग्रन्थ में बिम्बप्रतिष्ठा के अतिरिक्त चैत्यप्रतिष्ठा, कलशप्रतिष्ठा, ध्वजप्रतिष्ठा, बिम्ब के परिकर की प्रतिष्ठा, देवीप्रतिष्ठा, क्षेत्रपालप्रतिष्ठा, गणेश आदि देवों की प्रतिष्ठा, सिद्धमूर्ति की प्रतिष्ठा, देवतावसर समवसरण की प्रतिष्ठा, मंत्रपटप्रतिष्ठा, पितृमूर्तिप्रतिष्ठा, यतिमूर्तिप्रतिष्ठा, नवग्रहप्रतिष्ठा, चतुर्निकायदेवप्रतिष्ठा, गृहप्रतिष्ठा, वापी, सरोवर आदि जलाशयों की प्रतिष्ठा, वृक्षप्रतिष्ठा, अट्टालिका आदि भवनप्रतिष्ठा, दुर्ग प्रतिष्ठा एवं भूमि अधिवासना आदि विधियों का भी उल्लेख वर्धमानसूरि ने किया है। विस्तार भय से हम उसका विवेचन यहाँ नही कर रहे हैं, उसे आचारदिनकर के प्रतिष्ठाविधान नामक उदय एवं उसके मेरे द्वारा किए गए अनुवाद में देखा जा सकता है। तुलनात्मक अध्ययन वर्धमानसरि ने इस विधि में सर्वप्रथम बिम्बप्रतिष्ठा की चर्चा करते हुए गृहचैत्य एवं चैत्य में प्रतिष्ठित की जाने वाले प्रतिमा के परिमाण, उसकी संरचना तथा वास्तुसार से विपरीत प्रतिमा की आकृति होने पर उससे क्या-क्या हानियाँ होती हैं- उसका विशद वर्णन किया है। जैसे०५-चैत्य में विषम अंगुल या हस्तपरिमाण वाले बिम्ब को ही स्थापित करें, सम अंगुल परिमाण वाले बिम्ब को "आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-तेतीसवाँ, पृ.-१४२-१४३, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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