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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 319 पूर्वाभाद्रपदा, हस्त, अश्विनी, रेवती, पुष्य, मृगशीर्ष, अनुराधा, तथा स्वाती नक्षत्र प्रतिष्ठा हेतु श्रेष्ठ कहे गए है। प्रतिष्ठा कार्य में चर राशि के लग्न का त्याग करना चाहिए तथा स्थिर राशि के लग्न को ग्रहण करना चाहिए, इत्यादि। इस प्रकार प्रतिष्ठाकाल के सम्बन्ध में सबके अपने अपने मंतव्य है। संस्कार का कर्ता : वर्धमानसूरि के अनुसार यह विधि गृहस्थ-विधिकारक एवं आचार्यादि या स्थविर मुनियों द्वारा संयुक्त रूप से करवाई जाती है। वर्तमान में भी यह विधि श्वेताम्बर-परम्परा में विधिकारक एवं आचार्य या स्थविर मुनियों द्वारा ही करवाई जाती है। दिगम्बर-परम्परा में प्रतिष्ठा-विधि श्रावकों द्वारा करवाने के उल्लेख मिलते हैं। पण्डित आशाधरजी के अनुसार२४३ वानप्रस्थ और भिक्षु को प्रतिष्ठा कराने का निषेध है। दूसरी जगह ऐसा भी कहा गया है कि चौथी प्रतिमा से आठवीं प्रतिमा तक पाँच प्रतिमा वालों में कोई भी हो, वही प्रतिष्ठा करवाने का अधिकारी है, किन्तु वर्तमान में नेत्रोन्मीलन एवं मंत्रदान का कार्य आचार्य या स्थविर मुनि द्वारा किया जाता है। यदि आचार्य या मुनि न हो, तो उस समय प्रतिष्ठाचार्य को भी जिनलिंग को धारण करके ही ये दोनों क्रियाएँ करनी चाहिए। प्रतिष्ठापाठ में भी प्रतिष्ठा करने हेतु आवश्यक अधिकारियों का वर्णन करते हुए सर्वप्रथम सूरिमंत्र के दातार आचार्य का उल्लेख किया गया है।६४४ सम्भवतः यहाँ निर्ग्रन्थ आचार्य के लिए ही निर्देश दिया गया होगा। वैदिक-परम्परा में कर्मकांड विशारद आचार्य द्वारा प्रतिष्ठा करवाने के उल्लेख संप्राप्त होते है। आचारदिनकर में वर्धमानसूरि ने इसकी निम्न विधि प्रवेदित की हैप्रतिष्ठा-विधि - वर्धमानसूरि ने प्रतिष्ठा-विधि के अन्तर्गत जिनबिम्ब, चैत्य, कलश, ध्वज, परिकर, शासनदेवता, क्षेत्रपाल आदि की प्रतिष्ठा की विधियाँ प्रतिपादित की है। इसमें सर्वप्रथम यह बताया गया है कि किस आकार-प्रकार की प्रतिमाओं की किस स्थान पर प्रतिष्ठा करनी चाहिए। फिर इस ग्रन्थ में प्रतिष्ठा का मुहूर्त जानने हेतु नक्षत्र, राशि, तिथि, वार, लग्नशुद्धि, आदि का विचार किया गया है। उसके पश्चात् किस प्रकार के पत्थर, थातु अथवा काष्ठ की प्रतिमा बनाई जाती है, ६४५ प्रतिष्ठासारोद्धार, पं. आशाधर जी, अध्याय-१, पृ.-१३, पं. मनोहरलाल शास्त्री, श्री जैन ग्रंथ उद्धारक कार्यालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण : १६७४. ६५ प्रतिष्ठापाठ, जयसेनाचार्य विरचित, पृ.- १२, सेठ हीरालाल नेमचंद डोशी, मंगलवार पेठ, शोलापुर, वि. सं. : २४५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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