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________________ वर्थमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 283 के धर्मशासक होते हैं, अतः उनका निर्णय साध्वीसंघ को भी स्वीकार करना होता है। वे ही योग्यता का परीक्षण कर किसी साध्वी को इस पद पर नियुक्त करते है, किन्तु व्यवहारसूत्र के अनुसार६६ साध्वियाँ या प्रवर्तिनी आदि भी अन्य योग्य साध्वी को प्रवर्तिनी-पद पर नियुक्त कर सकती हैं। __ आचारदिनकर में वर्धमानसूरि ने इसकी निम्न विधि प्रवेदित की हैप्रवर्तिनी पदस्थापन की विधि वर्धमानसूरि ने इस विधि में सर्वप्रथम प्रवर्तिनी पद के योग्य साध्वी के लक्षणों की चर्चा की है। तदनन्तर प्रवर्तिनी-पदस्थापन की मूल विधि का उल्लेख किया गया है। वर्धमानसूरि के अनुसार गुणों से युक्त साध्वी को जिसने लोच तथा अल्पप्रासुक जल से स्नान किया हुआ है, प्रवर्तिनी पद प्रदान करने की विधि श्रावकजन को बड़े महोत्सव पूर्वक करना चाहिए। इसके लिए सर्वप्रथम समवसरण की स्थापना करें। तत्पश्चात् भावी प्रवर्तिनी समवसरण की तीन प्रदक्षिणा कर प्रवर्तिनी-पद प्रदान किए जाने हेतु नंदीक्रिया, वासक्षेप एवं चैत्यवंदन की अनुज्ञा प्राप्त करने हेतु गुरु के समक्ष निवेदन करे। तत्पश्चात् गुरु वर्धमानविद्या से अभिमंत्रित वासक्षेप प्रदान कर उसे नंदीक्रिया एवं चैत्यवंदन वगैरह कराए। तदनन्तर लग्नबेला के आने पर गुरु विधिपूर्वक प्रवर्तिनी को षोडशाक्षरी परमेष्ठीविद्यामंत्र तथा परमेष्ठीमंत्र का चक्रपट प्रदान करे। तत्पश्चात् उसे लघुनंदी का पाठ सुनाए। चतुर्विध संघ द्वारा वासक्षेप प्रक्षिप्त करने के पश्चात् गुरु उसे करणीय कार्यों की अनुज्ञा एवं अकरणीय कार्यों का निषेध करते हैं। ____ एतदर्थ विस्तृत जानकारी हेतु मेरे द्वारा अनुदित आचारदिनकर के द्वितीय भाग के अट्ठाईसवें उदय को देखा जा सकता है। उपसंहार सामान्यतः किसी भी कार्य के सफल संचालन हेतु एक निश्चित विधि का होना आवश्यक है। विधिपूर्वक किया गया कार्य निश्चित रूप से सिद्धि को प्राप्त करता है-इसमें कोई संदेह नहीं है। व्यवहार में भी हम देखते हैं कि किसी व्यक्ति को किसी सामान्य पद पर नियुक्त करने के लिए उसे जनसामान्य के समक्ष प्रतिज्ञा करवाई जाती है तथा उस कार्य से सम्बन्धित दायित्व सौंपे जाते हैं, जिससे कि वह अपने कार्य के प्रति सजग रहे। जब सामान्य व्यवहार में भी इन सब बातों का ध्यान रखा जाता है, तो फिर प्रवर्तिनी जैसे प्रमुख पद पर तो इन सब "व्यवहारसूत्र, मधुकरमुनि, सूत्र - ५/१३-१४, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, प्रथम संस्करण, १६६२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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