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________________ 270 साध्वी मोक्षरला श्री जीने के लिए व्यक्ति के जीवन में आचार-नियमों का पालन अत्यन्त अनिवार्य है। व्यक्ति किन आचारों का आचरण करे, उनका निर्देश या दिशासूचन कौन करे? यह बहुत बड़ा प्रश्न है। आचार्य ही एक ऐसा व्यक्तित्व है, जो स्वयं तो आचारों का पालन करता ही है, दूसरों को भी उपदेश देकर उन आचारों का पालन करवाता है। शास्त्रकारों ने आचार्य को प्रज्वलित दीपक की उपमा दी है, जो स्वयं तो प्रकाशित होता है तथा उसके सम्पर्क में आने वाले अन्य दीपकों को भी प्रकाशित करता है। जैसा कि कहा गया है.४६ जह दीवा दीवसयं, पइप्पए सो य दिप्पए दीवा। दीव समा आयरिया, दिप्पंति परं च दीवेंति।। अर्थात् एक दीप सैकड़ों दीपों को प्रदीप्त करता है और स्वयं भी प्रदीप्त रहता है। आचार्य भी अपने ज्ञान के आलोक से दूसरों को आलोकित करते है, और स्वयं भी प्रदीप्त रहते है। इसके साथ ही संघ की व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से निर्दिष्ट करने हेत भी योग्य आचार्य का होना परमावश्यक है, क्योंकि योग्य आचार्य ही किस समय क्या करना चाहिए-इसका निर्णय ले सकता है। आचार्य अगर गीतार्थ हो, तो ही वह शिष्य के संसारनाशक प्रधान ज्ञानादि गुणों की वृद्धि में सहायक बनता है, क्योंकि अज्ञानी आचार्य शिष्यों के संसारनाशक प्रधान ज्ञानादि गुणों में वृद्धि नहीं कर सकता है। यदि ज्ञानादि की गुण-संपत्ति स्वयं के पास न हो, तो उसका आरोपण वह दूसरों में कैसे कर सकता है? दरिद्र व्यक्ति चाहे कि वह किसी को श्रीमंत बना दे, तो भी वह उसे श्रीमंत नहीं बना सकता है, क्योंकि वह स्वयं धनसम्पत्ति का धारक नहीं है; इसी प्रकार अज्ञानी आचार्य भी हेयोपादेय का ज्ञान होने से शिष्यों के ज्ञानादिगुणों की वृद्धि नहीं कर पाता। अतः शिष्यों के ज्ञाना दिगुणों की अभिवृद्धि हेतु योग्य मुनि को आचार्य-पद प्रदान करना आवश्यक है। प्रतिमोद्वहन की विधि (यतियों की बारह प्रतिमाओं की उद्वहन-विधि) यतियों की बारह प्रतिमाओं की उद्वहन-विधि का स्वरूप भाषा जगत् में प्रतिमा शब्द के अनेक अर्थ हैं, यथा- प्रतिबिम्ब, समानता, आकृति, समरूपता इत्यादि, किन्तु जैन-परम्परा में प्रतिमा शब्द का ५४६ भिक्षुआगम विषयकोश (भाग-१), सम्पादक- आचार्य महाप्रज्ञ, पृ.- ६०, जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनू, प्रथम संस्करण : १६६६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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