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________________ 268 साध्वी मोक्षरला श्री गया है कि प्रशस्त तिथि, करण, मुहूर्त, नक्षत्र, योग एवं शुभलग्न में इस विधि को किया जाना चाहिए। दिगम्बर-परम्परा में भी यह विधि शुभ मुहूर्त में की जाती है। आचार्य-पद हेतु मुनि में किन-किन लक्षणों का होना आवश्यक है, इसका वर्धमानसूरि ने बहुत विस्तार से उल्लेख किया है। विधिमार्गप्रपा, सामाचारी आदि में हमें आचार्य-पद के योग्य मुनि के लक्षणों का इतना विस्तृत उल्लेख नहीं मिलता है। यद्यपि विधिमार्गप्रपा में भी आचार्य-पद के योग्य मुनि के लक्षणों का उल्लेख मिलता है, किन्तु वह वर्णन बहुत संक्षिप्त है। इसके साथ ही वर्धमानसूरि ने आचार्य-पद के अयोग्य मुनि के जिन लक्षणों का निरूपण किया है, उनका भी विस्तृत उल्लेख हमें इन ग्रन्थों में नहीं मिलता है, किन्तु प्रवचनसारोद्धार में आचार्य-पद के अयोग्य मुनि के लक्षणों का उल्लेख अवश्य मिलता है।४३ दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थों में भी आचार्य के गुणों का उल्लेख मिलता है, आचार्य-पदस्थापन-विधि से पूर्व श्रावकों द्वारा क्या-क्या कार्य किए जाने चाहिए, उनका भी उल्लेख आचारदिनकर में मिलता है। अन्यत्र इस प्रकार का उल्लेख हमें देखने को नहीं मिला। __ आचारदिनकर में आचार्य-पदस्थापन की जो मूल विधि बताई गई, वह मूल विधि प्रायः उपर्युक्त सभी ग्रन्थों में उपलब्ध आचार्य-विधि के सदृश ही है। लग्न के दिन कालग्रहण करना, स्वाध्याय-प्रस्थापन करना, आचार्य-पद प्रदान का मुहूर्त निकट आने पर प्रतिलेखित भूमि पर कम्बल आदि की प्रतिलेखना कर उसे आसनरूप में बिछाना, स्थापनाचार्य की स्थापना करना, गुरु द्वारा द्रव्य-गुण-पर्याय द्वारा अनुयोग के अनुज्ञार्थ नंदीक्रिया करना, चैत्यवंदन करना एवं वासक्षेप प्रदान करना, वासक्षेप को अभिमंत्रित करना, नंदीपाठ सुनाना, नवीनाचार्य को अनुयोग की अनुज्ञा प्रदान करना, सूरिमंत्र प्रदान करना, स्थापनाचार्य प्रदान करना, आदि सभी क्रियाएँ विधिमार्गप्रपा, सुबोधासमाचारी, सामाचारी आदि में भी मिलती है। इन ग्रन्थों में वर्णित विधि में कहीं-कहीं आंशिक भिन्नता है। जैसे-आचारदिनकर में वासक्षेप को अभिमंत्रित करने हेतु सोलह मुद्राओं के नाम का उल्लेख किया है, जिसका उल्लेख हमें अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है। ___आचार्य-पदस्थापन-विधि के समय प्रदान किए गए सूरिमंत्र की साधना विधि क्या है, साधना-विधि के समय साधक को किन नियमों का पालन करना ५४२ प्रवचनसारोद्धार, अनु.-हेमप्रभाश्रीजी, द्वार-११०, पृ.-४४०, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, प्रथम संस्करण : १६६६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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