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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन निवेदन करने पर गुरु अनुयोग के ज्ञापनार्थ सोलह मुद्राओं से अभिमंत्रित वासक्षेप प्रदान करते है तथा उसे नंदीक्रिया करवाते है। नंदीक्रिया में विशेष रूप से सप्तशती नंदी का पाठ सुनाया जाता है। नंदीक्रिया के पश्चात् लग्नवेला कं आने पर पूर्व आचार्य भावी आचार्य को विधिपूर्वक सूरिमंत्र तथा अक्षपोट्टलिका प्रदान करते है। तदनन्तर गुरु नवीनाचार्य का नामकरण करते है। तत्पश्चात् संघ नवीनाचार्य पर सुगन्धित चूर्ण डालता है। समान पद के आख्यापनार्थ पूर्वाचार्य किस प्रकार से नूतनाचार्य को वंदन आदि करे, इसका भी मूलग्रन्थ में उल्लेख हुआ है। तत्पश्चात् नूतनाचार्य देशना देते है । देशना के बाद पूर्वाचार्य नवीनाचार्य, अन्यमुनियों तथा नवीनाचार्य के शिष्यों को किस प्रकार से हितशिक्षा दे, इसका मूलग्रन्थ में विस्तृत उल्लेख किया गया है। तत्पश्चात् साधुवर्ग द्वारा नूतनाचार्य को उपकरण, पुस्तक आदि भेंट करने का तथा श्रावकों को महोत्सव आदि करने का निर्देश दिया गया है। तदनन्तर दोनों आचार्य अनुयोग के विसर्जनार्थ किस प्रकार से कायोत्सर्ग करें तथा नूतनाचार्य किस प्रकार से प्रत्याख्यान करे इसका उल्लेख किया गया है। विस्तारभय से उसका उल्लेख हम यहाँ नहीं कर रहें है । एतदर्थ विस्तृत जानकारी हेतु मेरे द्वारा अनुदित आचारदिनकर के द्वितीय भाग के पच्चीसवें उदय को देखा जा सकता है। तुलनात्मक विवेचन वैदिक - परम्परा के ग्रन्थों में इस संस्कार की विधि का हमें उल्लेख नहीं मिलता है। श्वेताम्बर एवं दिगम्बर- परम्परा के ग्रन्थों में ही हमें इस संस्कार की विधि मिलती है। श्वेताम्बर - परम्परा में इस संस्कार के विधि-विधान से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थ मिलते हैं। जैसे - विधिमार्गप्रपा, पादलिप्तसूरिकृत निर्वाणकलिका, पंचवस्तु, सुबोधासामाचारी आदि जिनकी तुलना हम वर्धमानसूरि द्वारा प्रज्ञप्त आचार्य पदस्थापन - विधि से करेंगे। ५४२ वर्धमानसूरि के अनुसार ' लतादि सप्तदोषों से रहित मुनि को दीक्षा प्रदान करने के मुहूर्त के समान ही आचार्य-पदस्थापन हेतु भी उपयुक्त नक्षत्रों में तथा शुभ वर्ष, मास दिन और लग्न में आचार्य - पदस्थापन की विधि करनी चाहिए। आचार्य-पदस्थापन के लग्न में ग्रहों की युति दीक्षा के समान तथा वर्ष, मास, दिन, नक्षत्र आदि की शुद्धि का विचार विवाह के समान करना चाहिए। विधिमार्गप्रपा, सामाचारी, सुबोधासामाचारी, पंचवस्तु, निर्वाणकलिका आदि में इन सब बातों का विस्तृत उल्लेख नहीं करते हुए, वहाँ मात्र इतना ही निर्देश दिया ५४२ 267 आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-पच्चीसवाँ, पृ. ११२, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण : १६२२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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