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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 261 विचार किया जाता है।३२, यद्यपि वर्तमान में इन मानदण्डों पर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है। संस्कार का कर्ता वर्धमानसूरि के अनुसार यह संस्कार आचार्य द्वारा ही करवाया जाता है। वर्तमान में भी यह संस्कार आचार्य द्वारा ही करवाया जाता है। दिगम्बर-परम्परा में भी सामान्यतः यह संस्कार आचार्य (गुरु) द्वारा ही करवाया जाता है। वर्धमानसूरि ने आचारदिनकर में इसकी निम्न विधि प्रवेदित की हैउपाध्याय-पदस्थापन-विधि उपाध्याय-पदस्थापन की विधि आचार्य-पदस्थापन की विधि के सदृश ही है, किन्तु उपाध्याय-पदस्थापन की विधि में अक्षमुष्टि, वलय, गुरुवंदन, कालग्रहण की विधि, बृहत्नदीपाठ, यव-वपन आदि क्रियाएँ नहीं होती हैं। बृहत्नदीपाठ के स्थान पर वहाँ तीन बार लघुनंदी का पाठ बोला जाता है। उपाध्याय-पदस्थापनविधि के अन्तर्गत वर्धमानविद्यापट एवं वर्धमानविद्या प्रदान करने का भी उल्लेख है। आचारदिनकर के चौबीसवें उदय में उपाध्याय-पदस्थापन की मात्र इतनी ही विधि का उल्लेख करते हुए वर्धमानसूरि ने इसकी विस्तृत जानकारी हेतु प्राचीन शास्त्रों में वर्णित आचार्य-पदस्थापन की विधि को देखने का निर्देश दिया है। तुलनात्मक विवेचन यद्यपि दिगम्बर-परम्परा में जो उपाध्याय पदस्थापना की विधि मिलती है, वह आचारदिनकर आदि श्वेताम्बर-पराम्परा के ग्रन्थों से एकदम भिन्न है। श्वेताम्बर-परम्परा की भाँति वहाँ नंदीक्रिया, कालग्रहण, बृहत्नदीपाठ का श्रवण करना आदि कार्य नहीं किए जाते है। दिगम्बर-परम्परानुसार शुभमुहूर्त में दाता गणधरवलय एवं द्वादशांगी-श्रुत की पूजा करे। तत्पश्चात् श्रीखण्ड आदि के छींटे देकर अक्षत का स्वस्तिक करे तथा उस पर पट्ट को स्थापित कर उपाध्याय-पद के योग्य मुनि का पूर्वाभिमुख करके बैठाए। तदनन्तर आचार्य सिद्ध, श्रुत भक्ति का पाठ कर आह्वान आदि मंत्रोच्चारपूर्वक भावी उपाध्याय के सिर पर लौंग एवं पुष्प डाले। तत्पश्चात् मंत्रपूर्वक उसके सिर पर कपूरयुक्त चन्दन लगाकर शांति एवं समाधिभक्ति का पाठ करे। तदनन्तर नूतन उपाध्याय गुरुभक्ति कर उपाध्याय-पद १३२ हुम्बुज श्रमण भक्तिसंग्रह, पृ.-४६६, श्रीसंतकुमार खण्डाका, खण्डाका जैन ज्वैलर्स, हल्दियों का रास्ता, जौहरी बाजार, जयपुर. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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