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(७) शुचि - संस्कार
(८) नामकरण - संस्कार
(६) अन्नप्राशन- संस्कार
(१०) कर्णवेध संस्कार
(११) चूड़ाकरण-संस्कार
(१२) उपनयन-संस्कार
(१३) विद्यारम्भ-संस्कार
१४) विवाह-संस्कार
(१५)व्रतारोपण-संस्कार
(१६) अन्त्य-संस्कार
(२) दिगम्बर - परम्परा में संस्कारों की संख्या
(७) नामकर्म - क्रिया
(८) बहिर्यान-क्रिया
(६) निषद्या- क्रिया
(१०) प्राशन-क्रिया
(७) वाचनानुज्ञा-विधि
(७) तप - विधि
(८) आचार्य - पदस्थापन - विधि (८) पदारोपण - विधि
(६) उपाध्याय - पदस्थापन - विधि
(१०) प्रतिमा - उद्वहन - विधि (११) साध्वी की दीक्षा - विधि (१२) प्रवर्तिनीपदस्थापन-विधि (१३) महत्तरापदस्थापन - विधि
(१४) अहोरात्रिचर्या-विधि (१५) ऋतुचर्या-विधि (१६) अन्तसंलेखना - विधि
श्वेताम्बर-परम्परा की भाँति ही दिगम्बर- परम्परा के पुराण ग्रन्थों में भी हमें संस्कारों के सम्बन्ध में उल्लेख प्राप्त होते हैं। आदिपुराण में संस्कार शब्द क्रिया के रूप में प्रयुक्त हुआ है। इसे वहाँ भी संस्कार के रूप में ही लिया गया है। आदिपुराण में तीन प्रकार की क्रियाओं का उल्लेख मिलता है, यथा - ( 9 ) गर्भान्वय- क्रियाएँ (२) दीक्षान्वय - क्रियाएँ (३) कर्त्रन्वय क्रियाएँ। इन तीनों क्रियाओं की संख्या क्रमशः ५३, ४८ एवं ७ है। इन क्रियाओं के नामोल्लेख इस प्रकार हैं
गर्भान्वय-क्रियाएँ
दीक्षान्वय-क्रियाएँ
कर्त्रन्वय-क्रियाएँ
(१) आधान - क्रिया
(२) प्रीति - क्रिया
(३) सुप्रीति - क्रिया (४) धृति-क्रिया
(५) मोद - क्रिया (६) प्रियोद्भव - क्रिया
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(१) अवतार-क्रिया
(२) वृत्तलाभ - क्रिया
(३) स्थानलाभ-क्रिया
(४) गणग्रह- क्रिया
(५) पूजाराध्य-क्रिया
(६) पुण्ययज्ञ - क्रिया
(७) दृढ़चर्या - क्रिया
साध्वी मोक्षरत्ना श्री
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(१) सज्जाति-क्रिया
(२) सद्गृहित्वक्रिया
(३) पारिव्राज्य
(४) सुरेन्द्रता
(५) साम्राज्य
(८) उपयोगिता-क्रिया (६) उपनीति-क्रिया (१०) व्रतचर्या - क्रिया
(६) परमार्हन्त्य
(७) परमनिर्वाण
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