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________________ 246 साध्वी मोक्षरत्ना श्री उद्दिसित्तए। दसवास- परियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ वियाहे नाम अंगे उद्दिसित्तए। एक्कारसवास- परियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ खुड्डियाविमाण पविभत्ती, महल्लियाविमाण पविभत्ती, अंगचूलिया, वग्गचूलिया, वियाहचूलिया नाम अज्झयणे उद्दिसित्तए। बारसवास-परियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ अरूणोववाए, वरूणोववाए, गरूलोववाए, धरणोववाए, वेसमणोववाए, वेलंधरोववाए, नामं अज्झयणे उद्दिसित्तए। तेरसवास-परियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पड़ उट्ठाणसुए, समुट्ठाणसुए, विदपरियावणिए, नागपरियावणिए नामं अज्झयणे उद्दिसित्तए। चोद्दसवास-परियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ सुमिण भावणानामं अज्झयणे उद्दिसित्तए। पन्नरसवास-परियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ चारण भावणानामं अज्झयणे उद्दिसित्तए। सोलसवास-परियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ तेयणिसग्गे नामं अज्झयणे उद्दिसित्तए। सत्तरवास- परियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ आसीविसभावणानामं अज्झयणे उद्दिसित्तए। अट्ठारसवास- परियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ दिट्ठिविसभावणानामं अज्झयणे उद्दिसित्तए। एगूणवीसवास-परियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ दिट्ठिवाय नाम अंगे उद्दिसित्तए। वीसवास-परियाए समणे निग्गंथे सव्वसुयाणुवाइ भवइ।" ... इस प्रकार तीन बरस के दीक्षापर्याय वाले को आचारांग, चारवर्ष के दीक्षापाय वाले को सूत्रकृतांग, पाँच वर्ष के दीक्षापर्याय वाले को दशा, कल्प, व्यवहारसूत्र, आठ वर्ष के दीक्षापर्याय वाले को स्थानांग एवं समवायांगसूत्र, दस वर्ष के दीक्षा पर्याय वाले को व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, ग्यारह वर्ष के दीक्षा के पर्याय वाले को क्षुल्लिका विमानप्रविभक्ति, महल्लिका विमानप्रविभक्ति, अंगचूलिका, वर्गचूलिका, और व्याख्याचूलिका, बारह वर्ष के दीक्षा पर्याय वाले को अरूणोपपात, वरूणोपपात, गरूडोपपात, धरणोपपात, वैश्रमणोपपात एवं वेलन्धरोपपात, तेरह वर्ष के दीक्षापर्याय वाले को उत्थानश्रुत, समुत्थानश्रुत, देवेन्द्र परियापनिका एवं नागपरियापनिका, चौदह वर्ष के दीक्षापर्याय वाले को स्वप्नभावना, पन्द्रह वर्ष के दीक्षापर्याय वाले को चारणभावना, सोलह वर्ष के दीक्षापर्याय वाले को तेजोनिसर्ग, सत्रह वर्ष के दीक्षापर्याय वाले को आसीविषभावना, अठारह वर्ष के दीक्षापर्याय वाले को दृष्टिविषभावना, उन्नीस वर्ष के दीक्षापर्याय वाले को दृष्टिवाद नामक बारहवाँ अंग पढ़ाना कल्पता है तथा बीस वर्ष के दीक्षा पर्याय वाला श्रमण सर्वश्रुत को धारण कर सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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