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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 19 ___ संक्षेप में “संस्कार का अभिप्राय बाह्य धार्मिक-क्रियाकाण्ड, धार्मिक-अनुष्ठान, आडम्बर पूर्ण कर्मकाण्ड, राज्य द्वारा निर्दिष्ट औपचारिकताओं एवं अनुशासित व्यवहारों से भिन्न आन्तरिक-विशुद्धि और आत्मिक-परिशुद्धि से है। संस्कार शब्द व्यक्ति के दैहिक, मानसिक और बौद्धिक-परिष्कार के लिए किए जाने वाले अनुष्ठानों से सम्बन्धित है।" दिगम्बर-परम्परा के जैन-पुराणों में संस्कार हेतु क्रिया शब्द का प्रयोग हुआ है, जिसका अर्थ भी आचरण, शिक्षण, शुद्धि-संस्कार, धार्मिक-संस्कार से ही लिया जाता है, जो एक सीमा तक संस्कार शब्द का ही पर्यायवाची है। इस प्रकार संस्कार शब्द का एक अर्थ विशिष्ट क्रिया भी है। आचारदिनकर में यह शब्द व्यक्ति के विकास हेतु किए जाने वाले उन विधि-विधानों हेतु व्यवहृत हुआ है, जिनके माध्यम से व्यक्ति का विकास होता है। संस्कार का अर्थ वहाँ मात्र विधि-विधानों से ही नहीं लिया गया है, क्योंकि मात्र विधि-विधान से व्यक्ति के अन्तःकरण की शुद्धि नहीं होती है। आत्मा का परिमार्जन करने हेतु विधि-विधान एक माध्यम है। उसका मूल उद्देश्य तो अन्तःकरण की शुद्धि करना है। वह एक प्रकार से चारित्रिक-विकास की प्रक्रिया इस प्रकार जैन-परम्परा में संस्कार का सम्यक् अर्थ ऐसी सम्यक क्रियाओं से है, जो व्यक्ति का पवित्रीकरण कर उसे आध्यात्मिक-साधना, धार्मिक-क्रियाकलाप और सामाजिक दायित्व के निर्वाह के योग्य बनाता है। संस्कार का महत्वः __संस्कार की अवधारणा-समाज सापेक्ष है, अतः संस्कारों का मूल्य एवं महत्व का आंकलन भी सामाजिक-परिवेश में ही करना होगा। यद्यपि परम्परागत रूप से इन संस्कारों को एक धार्मिक-स्वरूप प्रदान किया गया है, किन्तु भारत में धर्म और समाज एक-दूसरे से पृथक् नहीं माने गए हैं, अतः धार्मिक-संस्कारों का भी एक सामाजिक-परिप्रेक्ष्य होता है। वस्तुतः, ये संस्कार इसलिए आवश्यक हैं कि इनके माध्यम से व्यक्ति को एक सामाजिक प्राणी के रूप में विकास का अवसर मिलता है। सही अर्थ में संस्कार की महत्ता एवं उपयोगिता एक ओर व्यक्ति को समाज से जोड़ने में है, तो दूसरी ओर समाज द्वारा उसकी अस्मिता को स्वीकार करने में भी है। संस्कार व्यक्ति का सामाजिक-महत्व स्वीकार करने के भी माध्यम 'आदिपुराण में भारत, नेमीचंद शास्त्री, पृ.-१६४, गणेशवर्णी जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी, १६६८. संस्कृत हिन्दी कोश, वामन शिवराम आप्टे, पृ.-३११, भारतीय विद्या प्रकाशन, वाराणसी, १६६६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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