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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
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नहीं मिलता है, नैष्ठिक ब्रह्मचारी के रूप में मौजीबन्धन आदि का उल्लेख अवश्य मिलता है।
___वर्धमानसूरि ने ब्रह्मचर्यव्रत को ग्रहण करने हेतु एक विशेष दण्डक का निर्देश दिया है। यथा ५२
"करेमि भंते सामाइयं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जावनियमं पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि सव्वं मेहुणं पच्चक्खामि जाव नियम पज्जुवासामि दुविहं, तिविहेणं, मणेणं, वायाए, कारणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि"
इस प्रकार के पाठ (दण्डक) का निर्देश दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा के ग्रन्थों में देखने को नहीं मिलता है।
वर्धमानसूरि के अनुसार ब्रह्मव्रत को ग्रहण करने के पश्चात् गुरु द्वारा व्रत को पुष्ट करने हेतु ब्रह्मचर्य की नौं वाडों का तथा अन्य आवश्यक बातों का उपदेश दिया जाता है। जैसे ५२- स्वाध्याय को छोड़कर हमेशा मौन धारण करना, अन्य किसी के घर में भोजन करते समय प्रायः सचित्त का त्याग करना, हमेशा लंगोटी एवं मुंज-मेखला को धारण करना, शरीर का संस्कार नहीं करना, आभूषण
आदि धारण नहीं करना.... इत्यादि। दिगम्बर वैदिक-परम्परा में ब्रह्मचर्याश्रम में स्थित ब्रह्मचारी हेतु भी कुछ इसी प्रकार के निर्देश दिए गए है। दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थों में भी ब्रह्मव्रत को पुष्ट करने हेतु दस प्रकार के अब्रह्म को त्यागने का निर्देश दिया गया है।
उपदेश प्राप्त करने के पश्चात् ब्रह्मचारी को किस प्रकार से तथा कितने समय तक इस व्रत का पालन करना चाहिए, इसका भी उल्लेख वर्धमानसूरि ने प्रस्तुत कृति में किया है। ५५ दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में भी ब्रह्मचारियों के लिए प्रायः इसी प्रकार के निर्देश मिलते हैं, किन्तु वर्धमानसूरि ने इस व्रत हेतु जिस प्रकार तीन वर्ष की अवधि विशेष का निर्देश दिया है, उस प्रकार का निर्देश दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में नहीं मिलता है।
४५२ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-सत्रहवाँ, पृ.-७२, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. "आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-सत्रहवाँ, पृ.-७२, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. " अणगार धर्मामृत, अनु.-पं.कैलाश चन्द्र शास्त्री, अध्याय-चतुर्थ पृ.-२७३ भारतीय ज्ञानपीठ, प्रथम संस्करण
१६७७. ४५ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-सत्रहवाँ, पृ.-७२, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२.
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