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________________ साध्वी मोक्षरत्ना श्री उल्लेख मूलग्रन्थ में हुआ है। तत्पश्चात् अन्त समय में साधक सम्पूर्ण आहार, सम्पूर्ण देह एवं सम्पूर्ण उपधि का त्याग कर परमेष्ठीमंत्र के स्मरणपूर्वक देह का त्याग करे। यह अनशन की विधि है। 212 तदनन्तर मृतदेह - विसर्जन की विधि बताई गई है। शिखा को छोड़कर ब्राह्मण के सम्पूर्ण सिर एवं दाढ़ी का मुण्डन करवाना चाहिए इसका उल्लेख करते हुए वर्ण, जाति के अनुसार शव - संस्कार की विधि करने के लिए कहा गया है। तत्पश्चात् मृतदेह को किस प्रकार से स्नान कराकर उसे श्रृंगारों से विभूषित करें, किस प्रकार से काष्ठ की शय्या बनाएं तथा गृहस्थ की मृत्यु पंचक में होने पर उससे उत्पन्न दोष के निवारणार्थ किस प्रकार से कुशपुत्र बनाएं इसका भी इसमें उल्लेख किया गया है। तत्पश्चात् स्वजाति के चार व्यक्तियोंसहित शव को श्मशान में ले जाएं तथा चिता में स्थापित कर पुत्र अग्नि-संस्कार करे । तत्पश्चात् प्रेत सम्बन्धी दान को ग्रहण करने वाले को दान दें तथा सब स्नान करें और उसी मार्ग से अपने घर आ जाएं। तत्पश्चात् उसकी भस्म एंव अस्थियों को कितने समय के बाद मृतक का पुत्र नदी में बहाए, परिवारजन शोक का निवारण किस प्रकार से करें तथा किस प्रकार से जिनचैत्य एवं उपाश्रय में जाएं आदि विवरण भी मूलग्रन्थ में दिया गया है। प्रसंगवशात् अंत में मृतक - स्नान में वर्जित नक्षत्रों का भी उल्लेख हुआ है। इसके साथ ही वर्धमानसूरि ने इस विभाग में जन्म एवं मरण सम्बधी सूतक पर भी विचार किया है। एतदर्थ विस्तृत जानकारी हेतु मेरे द्वारा अनुदित आचारदिनकर के प्रथमखण्ड के सोलहवें उदय के अनुवाद को देखा जा सकता है। तुलनात्मक विवेचन - वर्धमानसूरि ने अपने ग्रन्थ आचारदिनकर में अन्त्यसंस्कार के अन्तर्गत व्यक्ति की मृत्यु से पूर्व की आराधनाविधि एवं मृत्योपरान्त शरीर के विसर्जन सम्बन्धी विधि का विवेचन बहुत विस्तार से किया है। श्वेताम्बर - परम्परा के अर्द्धमागधी आगमग्रन्थ उपासकदशा में इस संस्कार का उल्लेख मिलता है, किन्तु इस संस्कार के विधि-विधान का हमें वहाँ उल्लेख नहीं मिलता है । ४३२ वर्धमानसूरि के अनुसार अन्त्यसंस्कार में मृत्यु से पूर्व संलेखनाव्रत की आराधना करवाई जाती है। वैदिक परम्परा में इस प्रकार की क्रियाविधि का उल्लेख नहीं मिलता। ४३२ उपासकदशा, सूत्र - १/८६, सं. - मधुकरमुनि, ब्यावर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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