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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 211 विसर्जन भी मुनि ही करते हैं। वे उसे योग्य स्थल पर छोड़ आते हैं। आचारदिनकर में वर्धमानसूरि ने इसकी निम्नविधि प्रस्तुत की है - अन्त्यसंस्कार की विधि - उपासक को श्रावकों की आचारविधि के अनुसार व्रतों का पालन करते हुए जीवन का अन्तिम समय आने पर श्रेष्ठ संलेखनाव्रत की आराधना करनी चाहिए। परमात्मा के कल्याण के स्थानों पर, या वन में, या अन्यत्र योग्य स्थान पर आमरण अनशन करना चाहिए। उस समय गुरु भी उस शुभस्थान पर जाकर ग्लान को मृत्युपर्यन्त आराधना कराए। __ अवश्यम्भावी मृत्यु के निकट आने पर आराधक को सम्यक्त्व आरोपण के समय की जाने वाली नंदीक्रिया कराए, किन्तु सम्यक्त्वारोपण के स्थान पर "संलेहणा आराहणा" शब्द का उच्चारण करे। तत्पश्चात् वैयावृत्यकरदेवता के आराधनार्थ कायोत्सर्ग एवं स्तुति के बाद आराधनादेवता का कायोत्सर्ग कर उनकी स्तुति बोले। तत्पश्चात् गुरु पूर्वोक्त विधि के अनुसार सम्यक्त्वदण्डक एवं द्वादश व्रतों का उच्चारण कराए। सम्पूर्ण क्रिया पूर्व की भाँति ही करे, किन्तु उसमें "संलेहणा आराहणा" शब्द का उच्चारण करे तथा नियमों को ग्रहण करवाते समय 'यावत् नियम पर्यन्त' के स्थान पर 'यावत् जीवन्त पर्यन्त' कहे। तत्पश्चात् विधिपूर्वक सर्वजीवों से क्षमायाचना करे। तत्पश्चात् आराधक सुकृत की अनुमोदना तथा दुष्कृत की आलोचना करता है। यदि पहले सम्यक्त्वव्रत का आरोपण किया हुआ हो, तो भी पुनः इस क्रिया के अन्त में सम्यक्त्वव्रतपूर्वक बारह व्रतों का आरोपण करे। जिसने पूर्व में श्रावक के बारह व्रतों को ग्रहण किया हुआ हो, उसे पहले उनके १२४ अतिचारों की आलोचना कराए। तत्पश्चात् गुरु एवं संघ किस प्रकार से ग्लान के सिर पर वासक्षेप डाले, पुनः आराधक किस प्रकार से क्षमा याचना करे - इसका मूलग्रन्थ में उल्लेख हुआ है। तदनन्तर मृत्यु के निकट आने पर ग्लान से सुकृत में वित्त का विनियोग करवाए तथा ज्ञात-अज्ञात दुष्कृत्यों के लिए आलोचना करवाए। तत्पश्चात् नमस्कारमंत्रपूर्वक ग्लान चार मंगलों की शरण स्वीकार करे तथा अठारह पापस्थानकों का तीन योग एवं तीन करण से जीवनपर्यन्त के लिए त्याग करे। तदनन्तर गुरु योगशास्त्र के पंचम प्रकाश का और कालप्रदीप आदि का वांचन करे तथा ग्लान की आयु क्षीण होती जानकर संघ आदि की अनुमति से आराधक को यावज्जीवन हेतु अनशन का उच्चारण कराए। फिर अन्तिम समय में आगाररहित अनशन ग्रहण कराए। गुरु एवं संघ किस प्रकार से उसे वासक्षेप प्रदान करे, अन्तिम समय में गुरु ग्लान को किन-किन विषयों का व्याख्यान करे - इसका भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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