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वर्षमानसरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
अध्याय-१ विषय-प्रवेश
'संस्कार' शब्द का अर्थ -
___ संस्कार शब्द का अर्थ जानने से पहले इस शब्द की व्युत्पत्ति के सम्बन्ध में जानना आवश्यक है। संस्कार शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत की 'कृञ्' धातु में 'सम्' उपसर्ग एवं 'घञ्' प्रत्यय के योग से हुई है, अर्थात् सम्+कृ+घञ्=संस्कार। संस्कार शब्द का प्रयोग भारतीय-इतिहास, धर्म और साहित्य में अनेक अर्थों में हुआ है। डॉ० राजबली पाण्डेय के अनुसार मीमांसक यज्ञांगभूत पुरोडाश आदि की विधिवत शुद्धि से इसका आशय समझते हैं। अद्वैत वेदान्ती आत्मा पर शारीरिक-क्रियाओं के मिथ्या आरोप को संस्कार मानते हैं एवं नैयायिक-भावों को अभिव्यक्त करने की आत्मव्यंजक-शक्ति को संस्कार मानते हैं, जिसका परिगणन वैशेषिक-दर्शन में चौबीस गुणों के अन्तर्गत किया गया है।
वैदिक-साहित्य में संस्कार शब्द की परिभाषा देते हुए कहा गया है:'संस्कारो नाम स भवति यस्मिन्जाते पदार्थों भवति योग्यः कस्यचिदर्थस्य"रे
अर्थात् संस्कार वह है, जिसके होने से कोई पदार्थ या व्यक्ति किसी कार्य के लिए योग्य हो जाता है।
तन्त्रवार्तिक के अनुसार “योग्यतां चादधानाः क्रियाः संस्कारा इत्युच्यन्ते," अर्थात संस्कार वह क्रिया है, जो योग्यता प्रदान करती है।
' हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-एक, पृ.-१८, चौखम्भा विद्याभवन, वाराणसी, पंचम संस्करण
१६६५. • देखे - धर्मशास्त्र का इतिहास (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१७६, उत्तरप्रदेश हिन्दी
संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १९८०. देखे - धर्मशास्त्र का इतिहास (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१७६, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १६८०.
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