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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 205 मूलगुणों को धारण करता है।४२८ दिगम्बर-परम्परा के आदिपुराण नामक ग्रन्थ में व्रतावतरण के सम्बन्ध में मात्र इतना ही उल्लेख मिलता है। उसमें इसकी क्रियाविधि एवं मंत्रों का कोई उल्लेख नहीं मिलता। वर्धमानसरि ने व्रतारोपण-संस्कार में सर्वप्रथम जिस प्रकार सम्यक्त्व ग्रहण करने सम्बन्धी निर्देश दिया है, उस प्रकार का निर्देश दिगम्बर-परम्परा के आदिपुराण में वर्णित व्रतावतरण-संस्कार में नहीं दिया गया है। यद्यपि दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थों में भी सम्यक्त्व ग्रहण करने सम्बन्धी उल्लेख मिलता है, परन्तु जिनसेनाचार्य ने इसे व्रतावतरण में समाहित नहीं किया है। वर्धमानसूरि ने व्रतारोपण-संस्कार में बाईस अभक्ष्यों के त्याग करने का भी निर्देश दिया है। दिगम्बर-परम्परा के व्रतावतरण-संस्कार में इन बाईस अभक्ष्यों में से पाँच उदुम्बर फलों का त्याग करने का उल्लेख मिलता है। यद्यपि दिगम्बर-परम्परा में भी द्विदल और अभक्ष्य सम्बन्धी निर्देश हैं, परन्तु व्रतावतरण-संस्कार में इन पाँचों के त्याग का ही उल्लेख मिलता है। वर्धमानसूरि ने व्रतारोपण-संस्कार में देशविरतिरूप श्रावक के द्वादश व्रतों का भी विस्तृत उल्लेख किया है, जबकि दिगम्बर-परम्परा के आदिपुराण में वर्णित व्रतावतरण-संस्कार में हिंसादि पाँच स्थूल पापों का ही त्याग करने का निर्देश दिया गया है; यद्यपि दिगम्बर-परम्परा के अनेक ग्रन्थों में श्रावक के द्वादश व्रतों का उल्लेख है। सागारधर्मामृत एवं विभिन्न श्रावकाचारों में इन व्रतों का अतिचारसहित विस्तृत विवेचन मिलता है। श्रावक के बारह व्रतों की संख्या के सम्बन्ध में श्वेताम्बर एवं दिगम्बर-परम्पराएँ एकमत हैं। श्रावक के इन बारह व्रतों का विभाजन निम्न रूप में हुआ है - पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रता श्वेताम्बर आगम उपासकदशांग में पाँच अणुव्रतों और सात शिक्षाव्रतों का उल्लेख है। यहाँ गुणव्रतों का शिक्षाव्रतों में ही समावेश कर लिया गया है। पाँच अणुव्रतों के नाम एवं क्रम के सम्बन्ध में भी मतैक्य है, लेकिन तीन गुणव्रतों में नाम की एकरूपता होते हुए भी क्रम में अंतर है। श्वेताम्बर-परम्परा में उपभोग-परिभोगव्रत का क्रम सातवाँ और अनर्थदण्डविरमण-व्रत का क्रम आठवाँ है। दोनों परम्पराओं में महत्वपूर्ण अन्तर शिक्षाव्रतों के सम्बन्ध में है। श्वेताम्बर-परम्परा में शिक्षाव्रतों का क्रम इस प्रकार है - ६. सामायिकव्रत, १०. देशावकाशिकव्रत, ११. पौषधव्रत, १२. अतिथिसंविभागवत। लेकिन दिगम्बर-परम्परा के कुछ ग्रन्थों में देशावकाशिक के स्थान पर संलेखना को शिक्षा व्रत के रूप में स्वीकार किया है। उनका क्रम आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनुवादक-डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व-अड़तीसवाँ, पृ.-२५०, भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ संस्करण : २००० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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