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________________ 198 साध्वी मोक्षरत्ना श्री भी इनमें से कुछ क्रियाओं का उल्लेख मिलता है। वैदिक-परम्परा में विवाह के एक या दो दिन पूर्व हरिद्रालेप करने का उल्लेख मिलता है। वर्धमानसूरि ने धूलिपूजा, करवापूजा, पवित्र जल लाना आदि सभी मंगलकार्य देश एवं कुलाचार के अनुरूप करने का निर्देश दिया है। साथ ही वरयात्रा के प्रस्थान की विधि तथा मंत्रों का भी उल्लेख किया है। दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में भी इसकी विधि उल्लेखित है, परन्तु इसके लिए किन मंत्रों का उच्चारण करें, उसका उल्लेख इन दोनों ही परम्पराओं में नहीं मिलता है। बारात के प्रस्थान की विधि, विवाह की विधि आदि सामान्यतः तीनों ही परम्पराओं में समान है, फिर भी परम्पराओं के भेद के कारण कुछ आंशिक मतभेद अवश्य मिलता है। वर्धमानसूरि ने अपनी इस विधि में प्रत्येक क्रिया हेतु मंत्रों का उल्लेख किया है, जो दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा की विधि में देखने को नहीं मिलते। इसी प्रकार कुछ अन्य क्रियाओं का भी उल्लेख मिलता है, जैसे - तोरण-प्रतिष्ठा-विधि, वेदी-स्थापन करना आदि। यद्यपि पं. नाथूलालजी शास्त्री ने जैन-संस्कार-विधि में वेदी बनाने आदि का उल्लेख किया है, परन्तु दिगम्बर-परम्परा के प्राचीन ग्रन्थों में इनकी विधि का उल्लेख नहीं मिलता है। विवाह की इन सम्पूर्ण क्रियाओं में वर्धमानसूरि ने देश एवं कुलाचार को भी महत्व दिया हैं। वर्धमानसूरि ने विवाह-विधि के अन्तर्गत जो मधुपर्क आदि षटआचार का वर्णन किया है, वह दिगम्बर-परम्परा में देखने को नहीं मिलते हैं, किन्तु वैदिक-परम्परा में इन आचारों का वर्णन मिलता है। १६ वर्धमानसूरि ने पाप-विवाह के स्वरूप को भी उल्लेखित किया है। साथ ही वेश्या के विवाह की विधि का भी निर्देश दिया है, जिसका उल्लेख हमें दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा के ग्रन्थों में देखने को नहीं मिला। दिगम्बर-परम्परा में कन्या-प्रदान एवं वरण के पश्चात् हवन करने का भी उल्लेख विशेष रूप से मिलता है। इस संस्कार हेतु आवश्यक सामग्री का वर्णन भी वर्धमानसूरि ने अपने ग्रन्थ आचारदिनकर में किया है, किन्तु इस प्रकार का उल्लेख दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा के पूर्ववर्ती ग्रन्थों में नहीं मिलता है, यद्यपि परवर्ती ग्रन्थों में इसका उल्लेख किया गया है। ४८ हिन्दूसंस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-अष्टम, पृ.-२६६, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, पांचवाँ संस्करण : १६६५ ४१६ हिन्दूसंस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-अष्टम, पृ.-२६८, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, पांचवाँ संस्करण : १९६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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