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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 197 पं. नाथूलाल शास्त्री की जैन-संस्कार-विधि के अनुसार बाना (विनायक) बैठाया जाता है, जिसमें विनायकयन्त्र की पूजा की जाती है। वैदिक-परम्परा में जौ बोने की क्रिया मृदाहरण नामक क्रिया के रूप में की जाती है।५।। वैदिक-परम्परा में कुलकरों की स्थापना की जगह गणपति एवं कन्दर्प की स्थापना की जाती है और इसकी विधि का भी वैदिक साहित्य में उल्लेख मिलता है। वर्धमानसूरि ने कुलकरों की स्थापना हेतु मंत्रों का उल्लेख किया है, परन्तु वैदिक-परम्परा में गणपति एवं कंदर्प की स्थापना के समय किन मंत्रों का उच्चारण करें, इसका उल्लेख पूर्ववर्ती साहित्य में नहीं मिलता है, किन्तु परवर्ती ग्रन्थों में ये उल्लेख मिलते हैं। वैदिक-परम्परा में गणपतिपूजन के साथ ही अन्य क्रिया भी की जाती है, जैसे १६ - स्वस्तिवाचन, वसोधारीपूजा, आयुष्यजप आदि, जिनका उल्लेख आचारदिनकर में नहीं मिलता है। इस प्रकार वैदिक-परम्परा में विवाह-संस्कार के अन्तर्गत ऐसे अनेक विधि-विधान किए जाते हैं, जो सामान्यतः जैन परम्परा में देखने को नहीं मिलते हैं। ___ वर्धमानसूरि के अनुसार कुलकर की स्थापना एवं पूजा करने के बाद वर के घर में शान्तिक और पौष्टिककर्म तथा कन्या के घर में माताओं की पूजा करना चाहिए, जबकि दिगम्बर-परम्परा में विधिपूर्वक सिद्ध परमात्मा की पूजा करने का उल्लेख मिलता है।४१७ उसमें शान्तिक-पौष्टिक कर्म करने एवं माताओं की पूजा करने सम्बन्धी उल्लेख नहीं मिलते हैं, किन्तु वैदिक-परम्परा में मातृकापूजन का उल्लेख मिलता है। वर्धमानसूरि के अनुसार विवाह से पूर्व दोनों पक्ष में अनेक क्रियाएँ की जाती हैं, जैसे - विवाह के कुछ दिनों पूर्व से ही वर-वधू को तेल का मर्दन कर स्नान कराना, प्रसाधन-सामग्री, सुगन्धित वस्तुओं, द्राक्षा आदि खाद्यपदार्थों का परस्पर आदान-प्रदान करना, कंकण-बन्धन करना आदि। ये सभी क्रियाएँ वर-वधू के चंद्रबल में एवं विवाह सम्बन्धी नक्षत्र में ही करनी चाहिए। दिगम्बर-परम्परा में ४१५ हिन्दूसंस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-अष्टम, पृ.-२६६, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, पांचवाँ संस्करण : १६६५ हिन्दूसंस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-अष्टम, पृ.-२६७, चौखम्बा विद्या भवन, वाराणसी, पांचवाँ __संस्करण : १६६५ " आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनु. डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व-अड़तीसवाँ, पृ.-२५१, भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ संस्करण : २००० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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