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________________ वर्षमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 147 आभूषण पहनाए। सूतक के दिन पूर्ण हो जाने पर भी यदि आर्द्र-नक्षत्र, सिंहयोनि-नक्षत्र एवं गजयोनि-नक्षत्र हों, तो स्त्री को सूतक-स्नान नहीं करवाना चाहिए- इस बात का उल्लेख करते हुए इन नक्षत्रों में स्नान करवाने के दुष्परिणाम के सम्बन्ध में भी मूल ग्रन्थ में विचार किया गया है। अन्त में इस संस्कार से सम्बन्धित सामग्री का उल्लेख हुआ है। इस विधि की विस्तृत जानकारी हेतु मेरे द्वारा किए गए आचारदिनकर के अनुवाद को देखा जा सकता है। शुचिकर्म-संस्कार का तुलनात्मक विवेचन - श्वेताम्बर-परम्परा में अर्द्धमागधी आगमग्रन्थ ज्ञाताधर्मकथा, औपपातिक, राजप्रश्नीय, कल्पसूत्र में इस संस्कार का उल्लेख मिलता है, किन्तु इसकी विधि हमें वहाँ उपलब्ध नहीं होती है।७२ वर्धमानसूरि ने आचारदिनकर में शुचिकर्म को एक स्वतन्त्र संस्कार के रूप में उल्लेखित किया है, जबकि दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थ आदिपुराण, आदि में इसे जातकर्म-संस्कार के अन्तर्गत ही उल्लेखित किया गया है। वहाँ इसकी एक स्वतन्त्र संस्कार के रूप में मान्यता नहीं है। यही स्थिति हिन्दू धर्मग्रन्थों में भी पाई जाती है, वहाँ भी इसे संस्कार के रूप में उल्लेखित नहीं करके अशौच (सूतक) और अशौच-निवारण के अन्तर्गत इसका उल्लेख किया गया है। हिन्दू-परम्परा में अशौच (सूतक) के दो प्रकार बताए गए हैंजनन-अशौच एवं मरण-अशौच। इसी प्रकार पं. नाथूलाल शास्त्री ने जैन-संस्कार विधि में भी इन दोनों अशौचों का उल्लेख किया है। शुचिकर्म-संस्कार का सम्बन्ध अशौच-निवारण से है, सभी परम्पराओं में यह तो स्वीकार किया गया है कि अशौच की शुद्धि आवश्यक है। हिन्दू-परम्परा में गृह्यसूत्रों, स्मृतियों एवं पुराणों के अतिरिक्त भी अशौच और उसकी शुद्धि पर विशेष साहित्य लिखा गया है। मात्र यही नहीं, हिन्दू-परम्परा में भी वर्धमानसरि के समान ही विभिन्न वर्गों के लिए सूतक के विभिन्न दिनों का उल्लेख मिलता है। इससे ऐसा लगता है कि सूतक सम्बन्धी ये विचार वर्धमानसूरि ने हिन्दू-परम्परा के आचार पर ही माने हैं, यद्यपि हिन्दू-परम्परा के ग्रन्थों में इस सम्बन्ध में मतभेद होने के कारण हिन्दू-परम्परा के ग्रन्थों से वर्धमानसूरि के ग्रन्थ में कुछ अन्तर भी देखा जाता है। यद्यपि प्रस्तुत प्रसंग तो केवल जननाशौच का है, किन्तु हिन्दू-परम्परा में अशौच के अनेक रूप मानकर उसकी शुद्धि के लिए विभिन्न दिनों का अलग-अलग उल्लेख किया गया है। वैदिक-हिन्दू-परम्परा में जन्म का सूतक सामान्यतः १० दिन का माना गया है। इसी प्रकार दिगम्बर-परम्परा में जन्म स्त्री के पितृपक्ष में हो, तो उसके माता-पिता २७२ (अ) ज्ञाताधर्मकथा सू.-१/६३ (ब) औपपातिक सू.-१०५ (स) राजप्रश्नीय सू.-२८० (सं.-मधुकरमुनि) (द) कल्पसूत्र सू.-१०१ (सं.-विनयसागर)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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