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________________ वर्धमानसूरिक्त आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन वर्धमानसूरि संस्कृत एवं प्राकृत-भाषा तथा उनके साहित्य के विशिष्ट जानकार थे। उन्होंने अपनी इस कृति में जगह-जगह अनेक आगमों के संदर्भ भी प्रस्तुत किए हैं, जो उनके आगमज्ञान को प्रकट करते हैं। लगभग १२५०० ग्रन्थान वाली संस्कृत एवं प्राकृत-भाषा से निबद्ध यह कृति उनके गंभीर अध्ययन का ही परिणाम है। वर्धमानसूरि का सम्पूर्ण सत्ताकाल कितना था, इसका निर्णय करना तो कठिन है, क्योंकि इस सम्बन्ध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। इसका अनुमान मात्र उनकी इसी कृति के आधार पर किया जा सकता है। यह कृति विक्रम संवत् १४६८ में पूर्ण हुई इस आधार पर उनका सत्ताकाल विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी इनके गृहस्थ एवं संयमी-जीवन के सन्दर्भ में हमें विशेष कोई जानकारी नहीं मिलती है। प्रस्तुत कृति के कर्ता वर्धमानसूरिजी के कृतित्व के सम्बन्ध में हमें जिनरत्नकोश एवं जैनसाहित्य का बृहत् इतिहास से कुछ सूचनाएँ उपलब्ध होती हैं। जिनरत्नकोश एवं जैनसाहित्य का बृहत् इतिहास, भाग-५ के अनुसार "स्वप्नप्रदोष" अपर नाम "स्वप्नविचार" नामक कृति भी रुद्रपल्लीगच्छ के वर्धमानसूरि की है। इसके अतिरिक्त जिनरत्न कोश में "कथाकोश" (शकुनरत्नावली) एवं “प्रतिष्ठाविधि" के कर्ता भी वर्धमानसूरि को बताया है। संभवतः, यह भी इन्हीं वर्धमानसूरि की कृति हो सकती है। सम्भव है कि आचारदिनकर में वर्णित "प्रतिष्ठाविधि" प्रकरण को ही एक स्वतंत्र कृति के रूप में माना गया हो। प्रस्तुत शोधप्रबन्ध सात अध्यायों में विभक्त है। इन अध्यायों में वर्णित विषयों का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है प्रथम अध्याय में विभिन्न परम्पराओं में 'संस्कार' को किस रूप में माना गया है, इसका उल्लेख करते हुए संस्कार शब्द के अर्थ को स्पष्ट किया गया है। तदनन्तर आचारदिनकर में वर्णित संस्कारों का क्या प्रयोजन है, उनका क्या महत्व है, इसका उल्लेख करते हुए संस्कारों की संख्या का अन्य परम्पराओं के साथ तुलनात्मक विवेचन प्रस्तुत किया गया है। दूसरे अध्याय में संस्कारों से सम्बन्धित साहित्य का प्रस्तुतिकरण किया गया है। इस अध्याय को तीन भागों में विभाजित करके मुख्यतः उन ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया है, जो आचारदिनकर में वर्णित विषयों से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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