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________________ 10 साध्वी मोक्षरत्ना श्री गया है। वर्धमानसूरि ने इसका भी स्पष्ट विवेचन किया है कि कौनसा संस्कार गृहस्थगुरु (विधिकारक) या जैन-ब्राह्मण द्वारा होगा और कौनसा संस्कार यति या मुनि द्वारा होगा। साथ ही उनकी योग्यताओं के बारे में भी बताया गया है। इस प्रसंग में उन्होंने आगमों के संदर्भ भी प्रस्तुत किए हैं। इस प्रकार वर्धमानसरिकत "आचारदिनकर" का संस्कार-साहित्य में अनुपम स्थान है। इस विषय में इसके समकक्ष ऐसा दूसरा कोई ग्रन्थ नहीं है- यह कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा। १२५०० श्लोक-परिमाण, २ खण्डों में विभाजित यह ग्रन्थ अपने-आप में अद्वितीय है। यही कारण है कि हमने इसे अपने शोधकार्य का विषय बनाया है। आचारदिनकर का सामान्य परिचय - श्वेताम्बर जैन-परम्परा में वर्धमानसूरिकृत “आचारदिनकर" मुख्यतः संस्कारप्रधान कृति है। इस कृति में लेखक ने व्यक्ति के गर्भ में आने से लेकर मृत्युपर्यन्त के संस्कारों का वर्णन किया है। प्रस्तुत कृति में गृहस्थजीवन एवं साधुजीवन के १६-१६ संस्कारों एवं गृहस्थ और मुनि के सामान्य आठ संस्कारों का- इस प्रकार कुल चालीस संस्कारों का विवेचन किया गया है। यह सम्पूर्ण कृति दो खण्डों में विभाजित है। प्रथम खण्ड में गृहस्थ एवं मुनि-जीवन के १६-१६ संस्कारों की चर्चा है एवं दूसरे खण्ड में गृहस्थ तथा मुनि के सामान्य आठ संस्कारों की चर्चा की गई है। वर्धमानसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व - “आचारदिनकर" के रचनाकार वर्धमानसूरि हैं। श्वेताम्बर-परम्परा में वर्धमानसूरि नाम के अनेक आचार्य हुए हैं, अतः संशय होना स्वाभाविक है कि इस कृति के रचनाकार वर्धमानसरि कौन हैं? परन्तु रचनाकार वर्धमानसूरि ने आचारदिनकर की अन्तिम प्रशस्ति में स्पष्ट रूप से इस समस्या का समाधान प्रस्तुत कर दिया है। ग्रन्थ-प्रशस्ति के अनुसार आचारदिनकर के रचनाकार वर्धमानसूरि ने स्वयं को रुद्रपल्ली गच्छ के अभयदेवसूरि (तृतीय) का शिष्य एवं जयानंदसूरि का लघु गुरुभ्राता बताया है। वर्धमानसूरि के व्यक्तित्व का वास्तविक परिचय तो उनकी कृति आचारदिनकर के अध्ययन से ही हो जाता है। संस्कारों को इस प्रकार निरूपित वही व्यक्ति कर सकता है, जो इनके महत्व एवं गूढ़ता को समझता हो। जब हम उनकी रचना, उनकी गुरु-परम्परा और उनके धर्मपरिवार के आधार पर उनके व्यक्तित्व का आंकलन करते हैं, तो यह पाते हैं कि वे एक प्रभावक जैनाचार्य थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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