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________________ 140 साध्वी मोक्षरत्ना श्री वैदिक-परम्परा में यह संस्कार ऋग्वेद६१ के मंत्रोच्चार के साथ किया जाता है। इस प्रकार तीनों ही परम्पराओं के मंत्रों में भिन्नता है। तीनों परम्पराओं में यह संस्कार एक निश्चित दिन करने का निर्देश दिया गया है, यद्यपि दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में यह संस्कार शिशु के जन्म के प्रथम दिन तथा श्वेताम्बर-परम्परा में तीसरे दिन किया जाता है। श्वेताम्बर-परम्परा में स्तनपान करते हुए शिशु को गृहस्थगुरु (विधिकारक) किस मंत्र से आशीर्वाद दे, उसका भी उल्लेख आचारदिनकर में किया गया है। वह मंत्र निम्न है२६२ - “ऊँ अहँ जीवोऽसि, आत्मासि, पुरुषोऽसि, शब्दज्ञोऽसि, रूपज्ञोऽसि, रसज्ञोऽसि, गन्धज्ञोऽसि, स्पर्शज्ञोऽसि, सदाहारोऽसि, कृताहारोऽसि, अभ्यस्ताहारोऽसि, कावलिकाहारोऽसि, लोमाहारोऽसि, औदारिकशरीरोऽसि, अनेनाहारेण तवांगवर्द्धतां, बलं वर्द्धतां, तेजोवृद्धतां, पाटवं वर्द्धतां, सौष्ठवं वर्द्धतां, पूर्णायुभव अहँ ऊँ।।" परन्तु दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में इस प्रकार के आशीर्वाद देने सम्बन्धी मंत्र का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। श्वेताम्बर-परम्परा में इस संस्कार के लिए किस प्रकार की सामग्री की आवश्यकता है, उसका भी उल्लेख वर्धमानसूरि ने अपने ग्रन्थ आचारदिनकर में किया है।२६३ सामग्री सम्बन्धी इस प्रकार का निर्देश दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा के प्राचीन ग्रन्थों में नहीं किया गया है। श्वेताम्बर-परम्परा में जिस प्रकार इसे स्वतंत्र संस्कार मानकर जो महत्व दिया गया है, उतना महत्व दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में इसे नहीं दिया गया है। श्वेताम्बर-परम्परा के संस्कार सम्बन्धी ग्रन्थ आचारदिनकर में वर्धमानसूरि ने इसकी बहुत ही सरल एवं संक्षिप्त विधि का वर्णन किया है, जबकि दिगम्बर-परम्परा में एवं वैदिक-परम्परा में इसे न तो इस नाम से विवेचित किया गया है तथा न इसकी अलग से कोई विधि बताई गई है, अपितु जातकर्म में ही २६१ देखे - धर्मशास्त्र का इतिहास (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१६२, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १६८०. २६२ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-पांचवाँ, पृ.-१२, निर्णय सागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन् १६२२. २६३ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-पांचवाँ, पृ.-१२, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन् १६२२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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