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________________ साध्वी मोक्षरत्ना श्री चंद्रदर्शन किसी अन्य रात्रि को भी कर सकते हैं । २५३ वैदिक परम्परा में चंद्रदर्शन चौथे मास में करने का निर्देश दिया गया है, पर इसकी विधि क्या है ? इस संबंध में वहाँ हमें कोई सामग्री प्राप्त नहीं होती है। 136 ज्ञातव्य है कि श्वेताम्बर - परम्परा के ग्रन्थ आचारदिनकर में विधिकारक को इस संस्कार की दक्षिणा इस समय देने के लिए (सूतक होने के कारण ) निषेध किया गया है। | २५४ वैदिक परम्परा में ऐसे किसी विधि - निषेध का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। इसी प्रकार वर्धमानसूरि ने जिस प्रकार आचारदिनकर में इस संस्कार हेतु आवश्यक सामग्री का निर्देश दिया है२५५, उस प्रकार का दिशानिर्देश दिगम्बर एवं वैदिक परम्परा के प्राचीन ग्रन्थों में नहीं मिलता है। श्वेताम्बर - परम्परा के आचारदिनकर नामक ग्रन्थ में जन्म के तीसरे दिन सूर्य-चन्द्र-दर्शन- संस्कार का विधान है और साथ ही इसकी संक्षिप्त एवं सरल विधि भी बताई गई है। वैदिक परम्परा के प्राचीन ग्रन्थों में भी इसकी विधि का संक्षिप्त उल्लेख ही मिलता है, परन्तु वैदिक - परम्परा की परवर्ती रचनाओं में इसकी विधि को विस्तृत रूप देकर जटिल बना दिया गया है। इस संस्कार के समय के सम्बन्ध में वैदिक - विद्वान् एकमत नहीं हैं। कोई बारहवें दिन, तो कोई तीसरे महीने में, तो कोई चौथे महीने में और कोई अन्नप्राशन के साथ इस संस्कार को करने के लिए कहते हैं। दिगम्बर - परम्परा में इस संस्कार का स्वतंत्र रूप से कोई उल्लेख नहीं मिलता है। मात्र प्रियोद्भवक्रिया, अर्थात् जातकर्म - संस्कार के साथ ही तीसरे दिन मात्र आकाश-दर्शन कराने का उल्लेख मिलता है। उपसंहार - इस तुलनात्मक - विवेचन के पश्चात् जब हम इस संस्कार की उपादेयता एवं प्रयोजन को लेकर समीक्षात्मक दृष्टि से विचार करते हैं, तो यह पाते हैं कि यह संस्कार प्राचीनकाल से किया जाता रहा है, क्योंकि श्वेताम्बर - परम्परा के आगमग्रन्थ कल्पसूत्र में भी इस संस्कार का उल्लेख मिलता है, यद्यपि इसकी पूर्ण विधि वहाँ हमें उपलब्ध नहीं होती है। निश्चित रूप से इस संस्कार को किए जाने के पीछे विशिष्ट प्रयोजन यही रहा होगा कि बालक को प्रकाश से और उसके माध्यम से बाह्यजगत् से परिचित कराया जाए। हमारे जीवन में प्रकाश का अत्यन्त २५३ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत ( प्रथम विभाग), उदय-चौथा, पृ. ११, निर्णयसागर मुद्रालय बॉम्बे, सन् १६२२ २५४ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत ( प्रथम विभाग), उदय-चौथा, पृ. ११, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन् १६२२ २५५ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत ( प्रथम विभाग), उदय-चौथा, पृ. ११, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन् १६२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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