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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
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सूर्य-चन्द्र-दर्शन संस्कार -
शिशु के जन्म के तीसरे दिन गृहस्थ गुरु समीप के गृह में अर्हत्-अर्चनापूर्वक जिनप्रतिमा के आगे स्वर्ण, ताम्र या रक्त-चंदन की सूर्य की प्रतिमा को स्थापित करके विधिपूर्वक उसकी पूजा करे। उसके बाद शिशु-माता स्नान करके सुन्दर वस्त्रों एवं आभूषणों को धारण करे तथा दोनों हाथों में शिशु को लेकर सूर्य के सम्मुख जाए। विधिकारक-गुरु-सूर्य वेदमंत्र का उच्चारण करके माता और पुत्र को सूर्य का दर्शन कराए। सूर्यदर्शन के बाद माता पुत्रसहित गुरु को नमस्कार करे। तदनन्तर गुरु उन दोनों को आशीर्वाद प्रदान करे। उसके बाद विधिकारक-गुरु अपने स्थान पर आकर स्थापित जिन-प्रतिमा एवं सूर्य-प्रतिमा को विसर्जित करे। माता एवं पुत्र को सूतक होने के कारण वहाँ न ले जाए।
तत्पश्चात् उस दिन संध्याकाल के समय दूसरे कक्ष में गृहस्थ-गुरु जिनपूजापूर्वक जिनप्रतिमा के आगे स्फटिक, चाँदी या चन्दन की चंद्र-प्रतिमा को स्थापित कर उसकी विधिपूर्वक पूजा करे। तत्पश्चात् सूर्यदर्शन की भाँति ही चंद्रोदय के समय वेदमंत्रपूर्वक गृहस्थ-गुरु माता एवं शिशु को चंद्र के दर्शन करवाए। चंद्रदर्शन होने के बाद पुत्र को गोद में लेकर माता गुरु को नमस्कार करे तथा गुरु उन्हें आशीर्वाद प्रदान करे। सूतक में दक्षिणा नहीं दी जाती है। उसके बाद गुरु जिनप्रतिमा एवं चंद्र-प्रतिमा का विसर्जन करे।
___ यदि उस रात्रि में चतुर्दशी, अमावस्या होने के कारण, अथवा आकाश बादलों से ढका होने के कारण चन्द्रदर्शन न हो पाए, तो भी पूजन उसी संध्या में करे, चन्द्रदर्शन किसी अन्य रात्रि को भी करवाया जा सकता है।
___ अन्त में इस विधि से सम्बन्धित सामग्री का उल्लेख किया गया है। इस विधि की विस्तृत जानकारी हेतु मेरे द्वारा किए गए आचारदिनकर के अनुवाद को देखा जा सकता है। तुलनात्मक-विवेचन -
वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर के अनुसार श्वेताम्बर-परम्परा में सूर्य-चन्द्रदर्शन नामक यह संस्कार जन्म के पश्चात् दो दिन व्यतीत हो जाने पर तीसरे दिन किया जाता है। श्वेताम्बर-परम्परा के अर्द्धमागधी आगमग्रन्थ ज्ञाताधर्मकथा, राजप्रश्नीय एवं कल्पसूत्र में भी इस संस्कार का यही समय बताया गया है।२४४ औपपातिकसूत्र में जन्म के दूसरे ही दिन यह संस्कार करने का
२५ (अ) ज्ञाताधर्मकथा सू.-१/६३ (ब) राजप्रश्नीय सू.-२८० (सं.-मधुकरमुनि) (स) कल्पसूत्र सू.-१०१
(सं.-विनयसागर)।
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