________________
साध्वी मोक्षरत्ना श्री
२४०
_२४१
मंत्रोच्चार के साथ शिशु को तारों से सुशोभित आकाश का दर्शन करवाते हैं। इस परम्परा में अलग से सूर्य एवं चन्द्र-दर्शन करवाने का उल्लेख नहीं मिलता। वैदिक-परम्परा में भी इस नाम के संस्कार का उल्लेख नहीं मिलता है, वरन् निष्क्रमण नामक संस्कार में ही इस संस्कार का समावेश कर दिया गया है। उसमें तीसरे माह में सूर्यदर्शन एवं चौथे मास में चन्द्रदर्शन करवाने के स्पष्ट उल्लेख मिलते हैं, जबकि जैन - परम्परा में यह संस्कार तीसरे दिन करने का उल्लेख है।
132
संस्कार का कर्त्ता -
-
२४२
श्वेताम्बर - परम्परा एवं वैदिक परम्परा में यह संस्कार अपनी-अपनी कुल - परम्परा के अनुसार करते हैं। श्वेताम्बर - जैन - परम्परा में यह संस्कार जैन-ब्राह्मण या क्षुल्लक के द्वारा करवाया जाता है। वैदिक - परम्परा के गृह्यसूत्रों के अनुसार यह संस्कार माता-पिता करवाते थे। मुहूर्त - संग्रह के अनुसार इस संस्कार को सम्पन्न कराने के लिए मामा को आमंत्रित करना होता था, किन्तु परिस्थितियों में परिवर्तन होने के कारण इस संस्कार को सम्पन्न करने का अधिकार उससे अन्य व्यक्तियों को भी प्राप्त हो गया। संस्कारप्रकाश २४३ में इसका निर्देश देते हुए कहा गया है - पति की अनुपस्थिति में गर्भाधान को छोड़कर सभी संस्कार किसी सम्बन्धी द्वारा किए जा सकते हैं। इस प्रकार हिन्दू परम्परा में कर्त्ता के सम्बन्ध में मतभेद हैं। दिगम्बर - परम्परा में इस संस्कार के समरूप आकाश- दर्शन नामक क्रिया का उल्लेख मिलता है। उसमें “ माता-पिता पुत्र को गोदी में उठाकर तारों से सुशोभित आकाश का दर्शन कराते हैं, किन्तु दिगम्बर- परम्परा में आदिपुराण के अनुसार सम्पूर्ण क्रिया वह व्यक्ति ही करवा सकता है, जिसे विद्याएँ सिद्ध हो गईं हैं, जो सफेद वस्त्र पहने हुए है, पवित्र है, यज्ञोपवीत धारण किए हुए है और जिसका चित्त आकुलता से रहित है । ऐसा द्विज मन्त्रों द्वारा समस्त संस्कारों संबंधी क्रियाएँ करवा सकता है । "
आचारदिनकर में वर्धमानसूरि ने इसकी निम्न विधि प्रतिपादित की है
२४०
आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनुवादक सातवाँ संस्करण : २०००
२४१
हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय- पांचवाँ (तृतीय परिच्छेद), पृ. १११, चौखम्बा विद्याभवन, पांचवाँ संस्करण १६६५
२४२
देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय- पांचवाँ (तृतीय परिच्छेद), पृ. ११२, चौखम्बा विद्याभवन, पांचवाँ संस्करण १६६५
२४३ देखे धर्मशास्त्र का इतिहास ( प्रथम भाग ), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय - ६, पृ. १८३, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण : १६८०
1
-
Jain Education International
डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व - अड़तीसवाँ, पृ. ३०६, भारतीय ज्ञानपीठ,
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org