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________________ 128 साध्वी मोक्षरत्ना श्री श्वेताम्बर-परम्परा में बालक के जन्म होने पर सर्वप्रथम ज्योतिषी द्वारा जन्म का यथार्थ समय ज्ञात किए जाने का भी विधान है। इस हेतु ज्योतिषी घटिका लगाकर प्रसूतिगृह के समीप के कमरे में बैठे - यह निर्देश है। इसी प्रकार वैदिक-परम्परा में भी जन्मकाल का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के उल्लेख मिलते हैं, पर इस सम्बन्ध में कोई विशेष निर्देश एवं विधि का उल्लेख नहीं मिलता है। दिगम्बर-परम्परा में ज्योतिषी द्वारा यह सब किए जाने का स्पष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। श्वेताम्बर-परम्परा में नाल छिन्न होने से पूर्व ही विधिकारक एवं ज्योतिषी को यथाशक्ति दान देना बताया है।२२८ इसी प्रकार वैदिक-परम्परा में भी स्मृतिचन्द्रिका में हारीत, शंख, जैमिनी, आदि का उद्धरण देते हुए यह कहा गया है२२६ - नाल काटने के पूर्व अशौच नहीं माना जाता है, अतः तब तक दानादि दिया जा सकता है। दान में तिल, सोना, परिधान, धान्य, आदि देने का निर्देश है। दिगम्बर-परम्परा में उसी दिन, अर्थात् जन्म वाले दिन पुण्याहवाचन के साथ-साथ शक्ति के अनुसार दान करना चाहिए और जितनी बन सके, उतनी सब जीवों के अभय की घोषणा करना चाहिए३० - ऐसा उल्लेख मिलता है, पर यह दान कब दिया जाना चाहिए, अर्थात् नाल के छिन्न होने से पूर्व या पश्चात्- इसका स्पष्टीकरण नहीं किया गया है। श्वेताम्बर-परम्परा में विधि-विधानों के साथ ही ज्योतिषी एवं विधिकारक द्वारा बालक को दिए जाने वाले आशीर्वादरूप मंत्रों का भी उल्लेख मिलता है। दिगम्बर-परम्परा में पिता ही पुत्र को आशीर्वाद देता है, ज्योतिषी एवं गृहस्थ-गुरु द्वारा आशीर्वाद देने का उल्लेख नहीं मिलता है। श्वेताम्बर-परम्परा में इस समय कुछ अन्य विधि-विधान भी किए जाते हैं, जैसे-प्रसूता के स्नानार्थ जल को अभिमंत्रित करना, रक्षापोटली को रक्षामंत्र से अभिमंत्रित करना, आदि। ये विधि-विधान दिगम्बर-परम्परा एवं वैदिक-परम्परा में देखने को नहीं मिलते। कुछ संस्कार ऐसे हैं, जो दिगम्बर-परम्परा में ही मंत्रोच्चार के साथ किए जाते हैं, जैसे२३१ - नाल का छेदन “घातिंजयो भव"- यह मंत्र पढ़कर करना, “त्वं मंदराभिषेकाहॊ भव"- यह मंत्र बोलकर सुगन्धित जल से स्नान कराना, फिर २२६ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-तृतीय, पृ.-१०, निर्णयसागर मुद्रालय बॉम्बे, सन् १६२२ २२६ देखे - धर्मशास्त्र का इतिहास (प्रथम भाग) पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१६४, उत्तरप्रदेश, हिन्दी संस्थान लखनऊ, तृतीय संस्करण : १६८० २३° आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनु.-डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व-चालीसवाँ, पृ.-३०६, भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ संस्करण : २००० २३" आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनु.-डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व-चालीसवाँ, पृ.-३०५-३०६, भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ संस्करण : २००० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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