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________________ ७२ ] प्राकृत-दीपिका | नवम अध्याय (२) कर्मादि की सम्बन्धमात्र की विवक्षा में' । जैसे-तस्स कहियं ( तस्य कथितम्-उससे कहा) । मामाए सुमरइ (मातुः स्मरति-माता को याद करता है)। (३) हेउ (हेतु) शब्द के प्रयोग में जो हेतु होता है उसमें तथा 'हेउ' शब्द में । जैसे--अन्नस्त हे उस्स वसइ (अन्नस्य हेतोः वसति=अन्न के प्रयोजन से रहता है)। कस्स हेउस्स वसइ (कस्य हेतोः वसति-- किस हेतु से रहता है ) ? सप्तमी विभक्ति निम्न स्थलों में सप्तमी विभक्ति होती है (१) अधिकरण (आधार) में । जैसे-कडे आसइ कागो (कटे आस्ते काकः-- चटाई पर कोआ बैठा है)। मोक्खे इच्छा अत्थि (मोक्षे इच्छा अस्ति = मोक्ष के विषय में इच्छा है) । तिलेषु तेलं (तिलेषु तैलम्=तिलों में तेल है)। (२) सामी (स्वामी), ईसर (ईश्वर), अहिवई (अधिपति), दायाद, साखी (साक्षि), पडिहू (प्रतिभू ) और पसूअ (प्रसूत ) इन शब्दों के योग में ( षष्ठी भी) । जैसे-पवाणं गोसु वा सामी ( गवां गोषु वा स्वामी गायों का स्वामी ), गवाणं गनु वा पसूओ ( गवां गोषु वो प्रसूत: गायों से उत्पन्न ) । (३) जिस समुदाय से (किसी की विशेषता बतलाकर) पृथक्करण हो उस समुदाय में (षष्ठी भी)। जैसे--गवाणं गोसु वा किसणा बहुक्खीरा (गवां गोषु वा कृष्णा बहुक्षीरा-गायों में काली गाय अधिक दूध देती है)। कईसु कईणं वा कालिदासो सेट्ठो (कवीनां कविषु वा कालिदासः श्रेष्ठः - कवियों में कालिदास श्रेष्ठ है) । छत्ताणं छत्तेसु वा गोइंदो पडु (छात्राणां छात्रेषु वा गोविन्दः पटुःछात्रों में गोविन्द चतुर है)। १. कर्मादीनामपि सम्बन्धमात्रविवक्षायां षष्ठ्येव । सि० को०, पृ० १५१. २. षष्ठी हेतुप्रयोगे । अ० २. ३. २६. ३. आधारोऽधिकरणम । सप्तम्यधिकरणे च । अ० १. ४. ४५; २. ३. ३६. ४. स्वामीश्वराधिपतिदायादसाक्षिप्रतिभूप्रसूतश्च । अ० २. ३. ३९. ५. यतश्च निर्धारणम् । अ० २. ३. ४१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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