SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेखक की कलम से (द्वितीय संस्करण के आलोक में) प्राकृत के विपुल साहित्य में जीवन की समग्र झांकी देखी जा सकती है। संस्कृत के काव्यशास्त्रियों ने इसीलिए अपने लक्षण-ग्रन्थों में प्राकृत-पद्यों को बहुतायत से उद्धृत किया है। संस्कृत नाट्य-ग्रन्थों में भी प्राकृत का प्रयोग संस्कृत की अपेक्षा अधिक दिखलाई पड़ता है । अतः यदि हम संस्कृत - साहित्य को पढ़ना चाहते हैं अथवा तत्कालीन समाज, संस्कृति, इतिहास, दर्शन आदि की जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो प्राकृत का ज्ञान नितान्त जरूरी है। मध्ययुगीन साहित्य तो प्राकृत भाषा में ही बहुतायत से लिखा गया है। ऐसी कोई विधा नहीं है जो प्राकृत में उपलब्ध न हो। जैसे धर्मग्रन्थ, दर्शनशास्त्र, काव्य (कथा, महाकाव्य, खण्डकाव्य, चम्पू, नाटक, सट्टक आदि), अलङ्कार, व्याकरण, छन्द, कोष, अर्थशास्त्र, राजनीति, निमित्तशास्त्र, कर्मकाण्ड, ज्योतिष, सामुद्रिकशास्त्र, मन्त्रशास्त्र, रत्नपरीक्षा, धातुशास्त्र, वास्तुशास्त्र आदि । - प्रियदर्शी सम्राट् अशोक के शिलालेखों पर खुदी हुई बोलियाँ प्राकृत के प्रारम्भिक रूप हैं। ये लेख ब्राह्मी और खरोष्ठी दोनों लिपियों में मिलते हैं। बौद्ध त्रिपिटक जो पालिभाषा में लिखे गये हैं वस्तुतः उनकी भाषा मागधी प्राकृत या मगध भाषा है। दक्षिण पश्चिम की अशोकी प्राकृत से इसकी समानता देखी जा सकती है। ई० सन् २०० के आसपास खरोष्ठी लिपि में लिखा गया बौद्ध धम्मपद जिसकी भाषा भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश में मिलती है, की तुलना पालि धम्मपदसे की जा सकती है। ई० सन् तीसरी शताब्दी के चीनी तुर्किस्तान में खरोष्ठी के जो लेख मिलते हैं वे भी पश्चिमोतर प्रदेश की भाषा से मिलते-जुलते हैं। इसे नियाप्राकृत कहा जाता है । इस पर ईरानी तोखारी और मंगोली भाषाओं का प्रभाव है। जैनों का आगम - साहित्य अर्धमागधी प्राकृत तथा शौरसेनी प्राकृत में मिलता है। वैदिक संस्कृत में साहित्यिक प्राकृत की प्रवृत्तियाँ भी बहुतायत से मिलती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy