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________________ पार्श्वनाथ विद्यापीठ जैनविद्या के उच्चस्तरीय अध्ययन एवं शोधकार्य में निरत है। प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन जो इस संस्थान के शोध-छात्र भी रहे हैं ने संस्था के तत्कालीन मन्त्री श्री भूपेन्द्रनाथ जी जैन से अनुरोध किया कि प्राकृत भाषा के अध्ययन-अध्यापन हेतु संस्थान से छात्रोपयोगी पुस्तकों का भी प्रकाशन किया जाना चाहिए और इस ग्रन्थ को तैयार करने का अभिवचन दिया। प्रस्तुत ग्रन्थ उसी प्रयास का परिणाम है। प्रो० सुदर्शन लाल जैन इस समय संस्कृत विभाग में अध्यक्ष हैं तथा कला संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संकाय-प्रमुख भी हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ किस सीमा तक उपयोगी बन सका है, इसका निर्णय तो अध्यापक एवं छात्रगण ही कर सकेंगे। हमें सन्तोष है कि संस्थान ने इस ग्रन्थ का प्रकाशन कर जैनविद्या के अध्ययन के प्रति अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह किया है। इस पुस्तक का प्रथम संस्करण १९८३ में प्रकाशित हुआ था। छात्रों के लिए अत्यन्त उपयोगी होने के कारण इसकी १००० प्रतियाँ देखते ही देखते बिक गयीं। हम इसका द्वितीय संस्करण प्रकाशित करते समय गर्व का अनुभव कर रहे हैं। हम ग्रन्थ-लेखक डॉ० सुदर्शन लाल जैन के आभारी हैं जिन्होंने अल्प समय में इस ग्रन्थ का प्रणयन किया। इस ग्रन्थ के प्रूफ-संशोधन में संस्थान के शोधछात्र एवं तत्कालीन शोध-सहायक श्री रविशंकर मिश्र के सहयोग को भुलाया नहीं जा सकता। - संस्थान के वर्तमान अध्यक्ष श्री भूपेन्द्रनाथ जी जैन के सहयोग को भी विस्मृत नहीं किया जा सकता है। उन्होंने न केवल ग्रन्थ के द्वितीय संस्करण के प्रकाशन में अपनी रुचि प्रदर्शित की अपितु इस हेतु अर्थ-व्यवस्था जुटाने का भी कार्य किया। इसके द्वितीय संस्करण के प्रकाशन सम्बन्धी व्यवस्था में सक्रिय सहयोग के लिए संस्थान के निदेशक प्रोफेसर महेश्वरी प्रसाद, सह-निदेशक डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय एवं प्रकाशन अधिकारी डॉ. विजय कुमार निश्चित ही धन्यवाद के पात्र हैं। हम वर्द्धमान मुद्रणालय के भी आभारी हैं, जिन्होंने अल्प समय में इसका मुद्रण-कार्य सम्पन्न किया। डॉ० सागरमल जैन मंत्री दिनांक : ८ जुलाई, २००५ पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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