________________
सप्तम अध्याय : स्त्री प्रत्यय
पुल्लिङ्ग संज्ञाओं से स्त्रीलिङ्ग की संज्ञायें बनाने के लिए जिन प्रत्ययों को जोड़ा जाता है उन्हें स्त्री प्रत्यय कहते हैं । संस्कृत में ये आठ प्रकार के हैं-टाप्, डाप्, चाप् ('आ' वर्ग), ङीप्, ङीष्, ङीन् ('ई' वर्ग), ऊङ (ऊ) और ति । सामान्यरूप से प्राकृत में संस्कृत के ही समान स्त्री प्रत्ययों का विधान है । प्राकृत में ये ३ प्रकार के हैं-- आ, ई और ऊ । जैसे—
(क) 'आ' प्रत्यय -
प्रायः अकारान्त शब्दों में 'आ' जोड़ा जाता है -- बाल+आ = बाला (बाला ), वच्छा ( वत्सा), मूसिया ( मूषिका ), चडआ ( चटका ), पोढा ( प्रोढा ), अजा ( अजा ), कोइला ( कोकिला ), निउणा ( निपुणा ), पढमा ( प्रथमा ). मलिणा ( मलिना ), चउरा ( चतुरा ) ।
(ख) 'ई' प्रत्यय
(१) संस्कृत के नकारान्त और तकारान्त ( मतुप् एवं शतृ प्रत्ययान्त ) शब्दों में 'इ' प्रत्यय होता है । जैसे-
क. नकारान्त-- राया + ई = राणी ( राजन्राज्ञी ), बंभण + ई - बंभणी ( ब्रह्मन् ब्राह्मणी), हत्थिणी ( हस्तिन् - हस्तिनी ), मालिणी ( मालिन्= मालिनी ) ।
=
स्व. तकारान्त- सिरीमअ + ई = सिरीमई ( श्रीमत् = श्रीमती ), धणवअ + ई - धणवई ( धनवत् = धनवती ), हसन्ती ( हसन् हसन्ती ), पाअंती ( पिबत् पिबन्ती), पठन्ती ( पठन्ती ), पुत्तवई ( पुत्रवती ), गुणवई ( गुणवती ) ।
(२) संस्कृत के षित् (नर्तक, खनक, पथिक आदि ) और गौरादिगण ( गौर, मत्स्य, मनुष्य आदि) में पठित अकारान्त शब्दों में – गट्ठअ + ई = णट्ठई ( नर्तकी ), खणअ + ई = खणई ( खनकी), पहिअ + ई = पहिई ( पथिकी ), गोर+ ई = गोरी ( गौरी ), माणुस + ई = माणूसी ( मानुषी ), णअ + ई = ई ( नटी ), मंडल+ई= मंडली ( मण्डली ), कअल + ई = कअली ( कदली ), सुंदरी ( सुन्दरी ), पडी ( पटी ), माआमही ( मातामही ), मच्छी ( मत्सी ) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org