SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वर-सन्धि भाग १ : व्याकरण [ २७ (क) अ, आ+अ, आ-आ--दंड+अहीसो -दंडाहीसो, दंड अहीसो ( दण्डाधीशः ), पर+अहिवा-णराहिवा ( नराधिपाः ), ण+आगओ-णागओ ( नागतः), रमा अहीणो रमाहीणो ( रमाधीनः ), ण+आलवइ=णालवइ (नालपति )। (ख) इ, ई+इ, ई = ई---मुणि+ईसरो- मुणीसरो ( मुनीश्वरः ), पुहवी+ ईसो - पुहवीसो ( पृथिवीश: ), रयणी+ईसो- रयणीसो ( रजनीशः )। (ग) उ, ऊ+उ, ऊ ऊ -वहू+उअरं-वहूअरं ( वधूदरम् ), भाणु+ उवाज्झाओ-भाणूवज्झाओ ( भानूपाध्यायः ), सादु+उदगो - सादूदगो (स्वादूदकम् ), साहु+ऊसवो- साहूसवो ( साधूत्सवः )। २. गुण सन्धि ( असवर्ण स्वर सन्धि )--अ, आ के बाद असवर्ण ह्रस्व या दीर्घ इ उ हो तो दोनों के स्थान में क्रमशः ए और ओ गुणादेश विकल्प से हो जाते हैं। जैसे (क) अ, आ+इ, ई-ए-वास+इसी वासेसी वास इसी ( व्यासर्षिः ), दिण+ईसो-दिणेसो (दिनेशः ), जाया+ईसो - जायेसो (जायेशः); महा+इसी = महेसी ( महर्षिः)। (ख) अ, आ+उ, ऊ-ओ-सामा+उअसामोअरं ( श्यामोदकम् ) सास+ऊसासा-सासोसासा ( श्वासोच्छ्वासः ), गूढ+उअरं- गूढोअरं (गूढोदरम् )। ३. एक स्वरलोप सन्धि--सन्धि-योग्य स्वर के बाद स्वर होने पर कहींकहीं एक स्वर का लोप हो जाता है।' यह नियम गुणसन्ध्यादि का अपवादका है। जैसे-- पूर्व स्वर लोप (क) अ, आ+ए-ए ( नित्य 'अ' एवं 'मा' स्वर का लोप-वृद्धधभाव १-लुक् । हे० १. १. १०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy