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________________ रोहिणिया सुण्हा ] भाग ३ : सङ्कलन [ २४३ तए णं रोहिणी सुबहं सगडसागडं गहाय जेणेव सए कुल घरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता कोट्ठागारे विहाडेइ, विहाडित्ता पल्ले उभिदइ. उभिदित्ता सागडीसागड भरेइ, भरित्ता रायगिहं नगरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सए गिहे जेणेव धण्णे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ । तए ण रायगिहे नयरे सिंघाडग जाव बहुजणो अन्नमन्नं एकमाइक्खइ-'धन्ने ण देवाणुप्पिया ! धण्ण सत्थवाहे, जस्स ण रोहिणिया सुण्हा, जीए ण पंच सालिअक्खए सगडसागडिएणनिज्जाइए। तए ण से धण्णे सत्थवाहे ते पंच सालिअक्खए सगडसागडेणं निज्जाइए पासइ, पासित्ता हट्ट तुठ्ठपडिच्छइ, पडिच्छित्ता, तस्सेष पागच्छति, उपागत्य कोष्ठागाराणि विघटयति विघटय्य पल्लान् (शालिकोष्ठान्) उद्भिनत्ति, उद्भिद्य शकटीशाकटेषु भरति, भृत्वा राजगृहं नगरं मध्य-मध्येन यत्रैव स्वकं गृहं यत्र व धन्यः सार्थवाहस्तस्त्र वोपागच्छति । __ततः खलु राजगृहे नगरे शृङ्गाटकं यावत् ( महापथपथेषु ) बहुजनोऽन्योऽन्यमेवमाचष्टे-'धन्यः खलु हे देवानुप्रियाः ! धन्यः सार्थवाहो यस्य खलु रोहिणिका स्नुषा, यया खलु पञ्चशाल्यक्षताः शकटीशाकटेभ्य निर्यातिताः । ततः खलु स धन्यः सार्थवाहः पञ्चशाल्यक्षतान् शकटीशाकटेभ्यो निर्यातितान् पश्यति, दृष्ट्वा हृष्टः तुष्टः प्रतीच्छति, प्रतीष्य ( स्वीकृत्य ) तस्यैव मित्रज्ञातिरोहिणिका उन गाड़ियों को लेकर जहाँ अपना कुलगृह ( पितृगृह) था वहाँ गई। आकर कोठार खोले, कोठार खोलकर पल्य (प्रकोष्ठ ) खोलं, पल्य खोलकर गाड़ियां भरी, भरकर राजगृह नगर के मध्य भाग में से होकर जह अपना घर ( ससुराल ) था और जहाँ धन्य सार्थवाह था, वहां पहुंची। तब राजगृह नगर में महापथों (शृङ्गाटकों) में बहुत से लोग आपस में इस प्रकार कहने लगे-'हे देवानुप्रियो ! धन्य सार्थवाह धन्य है जिसकी रोहिणिका पुत्रवधू है जिसने पाँच ावल के दाने गाड़ियों में भरकर लौटाये । अनन्तर धन्य सार्थवाह उन पांच चावल के दानों को गाड़ियों (छकड़ा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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