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________________ २१२ ] प्राकृत-दीपिका [ जैन महाराष्ट्री महल्लदसणो, वंकसुदीहर सिरोहरो, विसमपरि हस्सबाहुजुयलो, मइमडहवच्छत्थलो, वंकविसमलम्बोयरो, विसमपइट्ठिऊरुजुयलो, परिथूलकठिणहस्स जंघो, विसमवित्थिण्णचलणो, हुतहुयवहसिहाजालपिङ्गकेसो अगिसम्मो नाम पुत्तो त्ति । तं च को उहल्लेण कुमारगुणसेणो पहयपडपडहमुइङ्गवंस-कंसालय पहाणेण मया तूरेण नयरजणमज्झे सहत्थतालं हसन्तो नच्चावेइ, रासम्म आरोवियं, पहट्टबहुडिम्भविन्दपरिवारियं, आरोवियमहारायसद्द बहुसो रायमग्गे सुतुरियतुरियं हिण्डावेद । एवं च पइदिणं कयन्तेणेव तेण कयत्थिज्जन्तस्स तस्स वेरग्गभावणा जाया । बाहुयुगलम्, अतिलघुवक्षस्थल: वक्रविषमलम्बोदरः विषमप्रतिष्ठितोरुयुगलः, परिस्थूल कठिनहृस्वजङ्घः, विषमविस्तीर्णचरणः, हुतवह शिखाजालपिङ्ग केश:, अग्निशर्मा नाम पुत्र इति । तं च कुतूहलेन कुमारगुणसेनः प्रहतपटुपटह-सृदङ्ग-वंश-कांस्यक लयप्रधानेन महता तूर्येण नगरजनमध्ये सहस्ततालं हसन् नर्तयति, रासभे आरोपितम्, प्रहृष्टबहुडिम्भवृन्दपरिवारितम् आरोपितमहाराजशब्दम् बहुशो राजमार्गे वाला था । उसका अग्निशर्मा नामक पुत्र था जो सोमदेवा (यज्ञदत्त की पत्नी) के गर्भ से उत्पन्न हुआ था, पीलापन लिए हुए गोल आँखों वाला था. स्थानमात्र से जानी जानेवाली चपटी नाक वाला था, बिल ( छेद ) मात्र से कानवाला था, होठों से बाहर निकले हुए बड़े-बड़े दाँतोंवाला था, टेढ़ी और मोटी गर्दन वाला था, असमान और छोटी भुजाओं वाला था, अत्यन्त संकीर्ण वक्षस्थल वाला था, टेढ़ा, विषम ( ऊँचा-नीचा ) तथा लम्बे पेटवाला था, विषम उरुयुगल वाला था, अत्यन्त स्थूल, कठिन और छोटी जाँघों वाला था, असमान एवं लम्बे पैरों वाला था, आग की लपटों के समान पीले बालों वाला था । कुमार गुणसेन कुतूहलवश सुन्दर नगाड़ा, मृदंग, बांसुरी, कांस्यक की लय तथा बड़ी तुरही की ध्वनि के साथ नगरवासियों के मध्य में हाथों से तालियाँ बजाता हुआ और हंसता हुआ उसे (अग्निशर्मा को ) नचाता था । गधे पर बैठाये Jain Education International For Private & Personal Use Only 9 www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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