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________________ इणुओ जम्मकहा ] भाग ३ : सङ्कलन [ १९७ १६. जं जं सयणस्प घरं वच्चइ आवासयस्म कज्जोणं । तं तं वारेन्ति नरा नरिन्दसंपेसिया सव्वं ॥ २७ ॥ १७. एवं धाडिज्जन्ती, सव्वेण जणेण निरणुकम्पेणं । घोराडविं पविट्ठा, पुरिसाण वि जा भयं देइ ॥ २० ॥ १८. अह अञ्जणा कयाई, वसन्तमालाए विरइएँ सयणे । वरदारयं पसूया, पुवदिसा चेव दिवसयरं ॥ ८९ ॥ १९. तस्स पभावेण गुहा, वरतम्वरकुसुम-पल्लवसणाहा । जाया कोइलमुहला, महयरझंकारगीयरवा ॥९०॥ १६. यस्य यस्य स्वजनस्य गृहं गच्छति आवासस्थ कार्यार्थम् । तं तं वारयन्ति नरा नरेन्द्रसम्प्रेषिताः सर्वम् ।। १७. एवं निष्कासन्ती सर्वैः जनः निरनुकम्पैः । घोराटवीं प्रविष्टा पुरुषाणामपि या भयं ददाति ॥ १८. अथ अञ्जना कदापि वसन्तमालया विरचिते शयने । वरदारकं प्रसृता पूर्वदिशा यथा दिवसकरं ॥ १९. तस्य प्रभावेण गुफा वरतरुारकुसुमपल्लवसनाथा । जाता कोकिलमुखरा मधुरझंकारगीतरवा ॥ १६. आवास-प्राप्ति के लिए वह जिस-जिस स्वजन के घर जाती थी उस उसको सभी को राजा के द्वारा संप्रेषित आदमी रोकते थे। १७. इस प्रकार सब निर्दय लोगों के द्वारा निष्कासित उसने ऐसे घोर वन में प्रवेश किया जो पुरुषों के लिए भयानक था। १८. इसके पश्चात् कभी वसन्तमाला के द्वारा विरचित शय्या के ऊपर अंजना ने पूर्वदिशा में उगने वाले सूर्य की भांति एक उत्तम पुत्र को जन्म दिया। १६. उसके प्रभाव से वह गुफा उत्तम तृक्षों के सुन्दर फूलों और पत्तों से युक्त, कोयल से मुखरित तथा भौरो के झंकार की गीत-ध्वनि से व्याप्त हो गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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